देहरादूनः उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में पानी समस्याएं आज भी मुंह बायें खड़ी है। स्टेट आफ एनवायरमेंट रिपोर्ट बताती है कि पर्वतीय क्षेत्रों में 72 फीसदी महिलाएं हर रोज पानी के लिए घर से कोसों दूर जाती है। 10 फीसदी महिलाओं को तो पानी के लिए घर से चार किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। जिस प्रदेश के लिए महिलाओं ने घर की चारदीवारी लांघी उसी प्रदेश में आज भी महिलाओं को पानी के लिए कई कोस का सफर करना पड़ रहा है।
स्टेट ऑफ इनवायरमेंट की रिपोर्ट बताती है कि कैसे प्रदेश में आज भी जल संकट जस का तस बना हुआ है। रिपोर्ट में बताया गया है कि पहाड़ में पानी की कमी लगातार बढ़ती जा रही है। पेयजल संकट लगातार बढ़ने से गांवों में पलायन भी हो रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि जल संकट की वजह से 72 प्रतिशत महिलाओं को अपने घर से बाहर पानी के लिए हर रोज निकलना पड़ता है। इस काम में उनकी मदद बच्चे भी करते हैं। करीब 60 फीसदी महिलाओं को पानी ढ़ोने के लिए कारीब आधा किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है।
- हाइलाइट्स
- स्टेट आफ एनवायरमेंट रिपोर्ट में खुलासा
- प्यासा है नदियों का मायका
- 8800 गांवों में पानी की कमी
- 72 फीसदी महिलाएं बाहर से ढ़ोती है पानी
- 10 फीसदी महिलाएं हर रोज 4 किमी दूर से लाती है पानी
- 11 हजार से अधिक पेयजल परियोजनाएं पंचायतों को सौंपी
प्रदेश में 11 हजार से अधिक पेयजल योजनाएं पंचायतों को सौंपी जा चुकी है लेकिन पहाड़ में जो भी पेयजल योजना है, उसमें से अधिकतर या तो जर्जर है या बहुत पुरानी है। बहुत से स्थानों पर जल वितरण की सही व्यवस्था नहीं है जो परेशानी का सबसे बड़ा सबब है। रिपोर्ट के मुताबिक पेयजल की अधिकतर सरकारी योजनाएं नियमित रूप से मरम्मत न होने और खराब वितरण के चलते असफल साबित हो रही है। इसमें यह भी बताया गया है कि प्रदेष्ज्ञ की 86 प्रतिशत मांग प्राकृतिक स्त्रोंत्रों से पूरी होती है। पहाड़ में नौलों, धारों आदि पर अधिकतर गांव की निर्भरता बनी हुई है। रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया है कि करीब 12 हजार प्राकृतिक स्त्रोत्र या तो सूख चुके हैं या फिर सूखने की कगार पर है। जिससे सूबे के पर्वतीय क्षेत्रों में जल संकट में इजाफा हो रहा है।