केंद्र और प्रदेश सरकार उत्तराखंड में यूनीक खेती बाड़ी मॉडल तैयार करने जा रही है। केंद्र में प्राकृतिक और जैविक खेती होंगे। प्राकृतिक खेती को धीरे-धीरे लाभकारी बनाने की योजना है। इसे लाभकारी, कम लागत वाली और पशुपालन सेक्टर को समावेश करने वाला बनाया जाएगा। इसको ऐसा स्वरूप दिया जाएगा जिससे नए कृषि उद्यम भी इसके साथ साथ चल सकें।
प्राकृतिक खेती प्रोजेक्ट के प्रभारी कृषि विभाग के संयुक्त निदेशक एके उपाध्याय बताते हैं कि केंद्र सरकार उत्तराखंड को प्राकृतिक खेती के सफल माडल के तैयार पर तैयार करना चाहती है। इसके लिए बाकायदा एक फंड बनाया जा रहा है। अभी केंद्र से यह धनराशि मिली नहीं है। प्रदेश में प्राकृतिक खेती के 128 क्लस्टर तैयार किए जाएंगे। हर क्लस्टर पचास हैक्टेयर का होगा। इसको परियोजना को 11 जिलो में संचालित किया जाएगा। अभी भारतीय अनुसंधान कृषि परिषद (आईसीएआर) के वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं।
प्राकृतिक खेती की खास बातें
- खेत या क्लस्टर के संसाधनों पर ही निर्भरताग
- गऊ व गोवंश से मिलने वाले गोबर व मूत्र पर निर्भरता मूत्रा
- जल संसाधन पर विशेष जोर मिट्टि की सेहत को बेहतर बनाने पर जोरक
- वैज्ञानिक पद्धति से उत्पादन और उत्पादकता पर बल
- बीज के संरक्षण और संवर्धन पर फोकस
- किसान को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान केंद्रित
- धनिक व अति धनिक वर्ग बनेंगे खाद्य उत्पादों के ग्राहक
- सर्टिफिकेशन प्रक्रिया पर फोकस नहीं
जैविक खेती की विशेषताएं
- बायो फर्टीलाइजर पर बल
- जैविक इनसेक्टीसाइड व पेस्टीसाइड पर फोकस
- जैविक खाद्य पर निर्भरता
- जैविक खेती में विदेश बाजारों को केंद्र में रखा गया है
- उत्पादन और उत्पादकता पर बहुत अधिक बल नहीं
- सर्टिफिकेशन प्रक्रिया केंद्रित खेती
- उत्तराखंड में जैविक कृषि 21 वर्ष से चालू है
चार-पांच गांवों के बीच इनपुट सेंटर बनेगा
जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के तालमेल रहेगा। प्राकृतिक खेती को सफल बनाने के लिए पर पांच गांवों के बीच एक इनपुट सेंटर बनाया जाएगा। इसमें गऊ और गोवंश के गोबर मूत्र समेत पेड़ों से निकलने वाले पत्तों को एक खाद बनाया जाएगा। इस काम में बकायदा कृषि विभाग एक ग्रामीण नौजवान को खरोजगार भी देगा। खरोजगारी को राशि भी सरकार की तरफ से दी जाएगी। बड़ी संख्या में पायलट प्रोजेक्ट शुरू किए जाएंगे। पशुपालन और कृषि विभाग मिलकर काम करेंगे। डेयरी और खेती का नाम साथ साथ किया जाएगा। इससे लागत बहुत कम हो जाएगी। खेती में उत्पादकता बढ़ेगी। बाहरी संसाधनों पर निर्भरता नहीं रहेगी।