- रिपोर्ट…
उज्ज्वाला योजना को लेकर केंद्र और भाजपा की सत्ता वाले राज्यों में बड़े-बड़े दावे किए गए। लेकिन, योजना का सच कुछ और ही है। जहां शुरू में योजना लेने वाले कई गरीब तबके के लोगों ने गैस सिलेंडर भराना बंद कर दिया। वहीं, कई ऐसे भी है, जिन्होंने आज तक उज्ज्वाला गैस कनेक्शन लिया ही नहीं। इस बाद का खुलासा एक सरकारी रिपोर्ट में हुआ है।
दैनिक जागरण की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर 2070 तक देश को नेट जीरो यानी कार्बन उत्सर्जन को पूरी तरह से खत्म करना है तो इसके लिए रसोई घरों से निकलने वाले प्रदूषण पर काबू पाना ही होगा। केंद्र सरकार ने देश के हर रसोई घर की हवा साफ-सुथरी करने के लिए मई, 2016 से उज्ज्वला योजना को शुरू किया था। लेकिन सरकारी रिपोर्ट ही बताती है कि यह पूरी तरह अपना लक्ष्य हासिल नहीं कर सका है।
ग्रामीण क्षेत्र के 80 फीसद घरों को एलपीजी कनेक्शन मिल गया है, इसके बावजूद 67 फीसद घरों में लकडी, उपलों व दूसरे स्त्रोतों से खाना पकाया जा रहा है। यह बात पेट्रोलियम व प्राकृतिक गैस मंत्रालय की तरफ से ऊर्जा उपभोग में बदलाव पर सलाहकार समिति ने अपनी रिपोर्ट में कही है। रिपोर्ट ने इस बात की भी पड़ताल की है कि क्यों लोग एलपीजी कनेक्शन होने के बावजूद गैस पर खाना नहीं पकाते। मोटे तौर पर इसके लिए गैस सिलेंडर की ज्यादा लागत को जिम्मेदार ठहराया गया है।
उज्जवला के तहत गैस कनेक्शन देने के समय कोई राशि नहीं देनी पड़ती लेकिन इसकी लागत उन्हें मासिक किस्त में नकदी में चुकाना होता है। बाद में इन्हें सिलेंडर और कनेक्शन की किस्त की राशि अदा करनी पड़ती है। सनद रहे कि उज्जवला योजना के तहत अभी तक कुल 9.5 करोड़ घरों को एलपीजी कनेक्शन दिया गया है।
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में अमूमन हर गैस कनेक्शन धारक 6.7 सिलेंडर सालाना इस्तेमाल करता है। ग्रामीण क्षेत्र में यह संख्या औसतन 6.2 है। लेकिन जिन घरों मे अभी भी दूसरे ईंधन (लकड़ी, उपले आदि) इस्तेमाल हो रहे हैं वहां सिर्फ सालाना 4.1 सिलेंडर ही औसतन इस्तेमाल हो रहे हैं।
रिपोर्ट के अनुसार जिन घरों से धुआं निकलता है वह प्रतिघर सालाना औसतन 32-36 किलोग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है। रिपोर्ट में कहा गया है कि नेट जीरो को हासिल करने के लिए बिजली से चलने वाले चूल्हों के इस्तेमाल को बढ़ावा देना होगा। लेकिन, इसके लिए निर्बाध बिजली की आपूर्ति बहुत ही जरूरी होगी। देश में बिजली की उपलब्धता की स्थिति काफी सुधरी है लेकिन हाल के वर्षाे में भी देखा गया है कि जब बिजली की मांग अचानक बढ़ जाती है तो देश के कई हिस्सों में बिजली की कटौती शुरू हो जाती है।