दुर्मीतालः शुरू हुई एक ताल के लिए कदमताल

0

चमोलीः सन् 1970 में आई भीषण आपदा ने निजमूला घाटी पर खूब कहर बरसाया था। यह आपदा इतनी भीषण थी कि इसने दुर्मीताल को भी हमेशा के लिए नेस्नाबूद कर दिया। आपदा का मंजर इतना खौफनाक था कि 5 वर्ग किलोमीटर में फैला दुर्मीताल जमींदोज होकर हर किसी के लिए रहस्य बन गया। कभी जलक्रिडाओं का तीर्थ रहा यह ताल आज बंजर जमीन बन चुका है। लेकिन समय ने भी करवट बदल दी है पांच दशक बाद इस ताल को दोबारा जिंदा करने की कवायद शुरू हुई है। दुर्मीताल के पुनर्निर्माण के लिए कई लोग आगे आये हैं। उम्मीद है कि दुर्मीताल एक बार फिर अपना आकार लेगी और निजमूला की पहचान और आर्थिकी का हिस्सा बनेगी।

मलबे में मिली ब्रिटिशकालीन नाव

मलबे में मिली नाव
ब्रिटिशकाल में नौकायान के लिए प्रसिद्ध रहे दुर्मीताल के पुनर्निर्माण के लिए स्थानीय लोग एकजुट हुए हैं। ईराणी गांव के प्रधान मोहन सिंह नेगी के नेतृत्व में इस ताल के गौरव को पुनः हासिल करने के लिए लोगों ने कमर कसी है। प्रधान नेगी बताते हैं कि उनका मकसद आपदा की भेंट चढ़े दुर्मीताल को पुनः उसके स्वरूप में लाना है। इसके लिए उन्होंने स्थानीय लोगों की मदद से काम करना शुरू कर दिया है। नेगी कहते हैं कि स्वतंत्रता दिवस के मौके पर निजमूला घाटी के एक दर्जन से अधिक गांवों के ग्रामीणों ने दुर्मीताल में एकत्रित होकर ताल के पुनर्निर्माण का संकल्प लिया। जिसके बाद पहले ही दिन खोदाई में ब्रिटिशकालीन एक नाव मलबे में दबी मिली तो लोगों का उत्साह देखते ही बना। इस नाव को देखने के लिए जगह-जगह से ग्रामीणों का हुजूम उमड़ रहा है।

पूरा होगा सपना
ईराणी के प्रधान मोहन सिंह नेगी कहते हैं कि गौंणा-दुर्मिताल के पुनर्निर्माण के पीछे एक सपना है, यह सपना यहां के युवाओं ने देखा है। वह कहते हैं कि दुर्मिताल कभी निजमूला घाटी की पहचान थी, जो आपदा में हमेशा के लिए खो गई। यह ताल घाटी के लिए आर्थिकी का जरिया था, जिसे वापस पाना है। यहां के युवाओं ने फिर से ताल को उसके पुराने स्वरूप में लाने का निश्चय किया है। एक दिन युवाओं की मेहनत रंग लायेगी और झील अपने स्वरूप में होगी।

ऐसे हुई सफर की शुरूआत
मोहन सिंह नेगी बताते हैं कि इस सफर की शुरूआत तब हुई जब एक दिन वह भारतीय जनता पार्टी के संस्थापक सदस्य व बदरी-केदार मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष अनुसुइया प्रसाद भट्ट से मुलकात करने गये थे। गोपेश्वर स्थित आवास में मुलाकात के दौरान दुर्मीताल के बारे में बात हुई। ताल के बारे में जब उन्होंने अपने संस्मरण सुनाए। उन्होंने बताया कि उनका एक ग्रुप गोपेश्वर से 1960 में दुर्मिताल की यात्रा पर गया था और ऐतिहासिक दुर्मिताल के बंगले में रात्रि विश्राम किया। अगले दिन उन्होंने दुर्मिताल में तैराकी की, किश्ती के जरिये ताल को आर-पार किया जो खासा सुकून देने वाला पल था। नेगी कहते हैं कि जब भट्ट उन्हें अपने जमाने के किस्से सुना रहे थे तो लग रहा था कि यह कल ही तो बात है। भट्ट के चेहरे पर खुशी के भाव नजर आ रहे थे लेकिन जैसे ही उन्होने आपदा का जिक्र किया उनके चेहरे पर झील के खोने के पीड़ा साफ दिख रही थी। वह कहते हैं कि उस समय हजारों की संख्या में लोग दुर्मिताल पहुंचते थे, जिसमें अधिकांश विदेशी पर्यटक होते थे।

कई रमणीय स्थल से घिरा था ताल
आपदा की भेंट चढ़े दुर्मीताल तब निजमुला घाटी के लोगों के लिए रोजगार का माध्यम था और इस ताल पर ही लोग आश्रित थे। क्योंकि दुर्मीताल के पास सप्तकुण्ड, नंदा घुंघुटी, एतिहासिक कर्जन ट्रेक है। लिहाजा कासी संख्या में पर्यटक यहाँ पहुँचते थे, यह ताल उस समय उत्तराखंड के सबसे बड़े तालों में से न सिर्फ एक था बल्कि नैनीताल से भी सुंदर था। लेकिन आपदा ने इस खूबसूरत ताल को हमेशा के लिए मिटा दिया। नेगी कहते हैं कि इस ताल के पुनर्निर्माण के लिए वह राज्य सरकार से काफी अपेक्षाएं रखते हैं। ताल का पुनर्निर्माण हो जाता है तो सीमांत निजमुला घाटी एक बार फिर पर्यटन के नक्शे पर उभर कर आ जायेगी। वह कहते हैं कि दुर्मीताल के पुनर्निर्माण के अभियान में वह जी जान से जुटे हैं। उन्हें भरोसा है कि एक दिन दुर्मीताल अपना आकार जरूर लेगा।

Previous articleब्रेकिंग न्यूजः टिहरी-उत्तरकाशी में भूकंप से कांपी धरती, जान-माल का नुकसान नहीं
Next articleहिदायतः अशासकीय शिक्षकों को 3 माह से नहीं मिला वेतन, शिक्षा मंत्री ने अधिकारियों को लगाई फटकार

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here