परीक्षा को लेकर बच्चों के अंदर एक डर बिठा दिया जाता है। जो बच्चों के सृजनशील मन को लगातार कमजोर करता है। विरासत में मिलने वाले इस भय से कई बच्चे पठन-पाठन से विमुख होकर गलत राह पकड़ लेते है जबकि वह अपार कौशल के धनी होते हैं। कितनी बड़ी बिडम्बना है कि परीक्षा का हौवा कई अनाम प्रतिभाओं का लील लेता है। कई युवा सपने पराज़ भरने से पहले ही दम तोड़ लेते हैं। परीक्षाओं के डर से टूटने वाले सपने कोई मामूली नहीं है बल्कि वृहद पैमाने पर अगर हम देखें तो यह किसी राष्ट्र-राज्य के लिए बड़ी समस्या भी है। इस अदृश्य डर से पार पाने के लिए शिक्षकों की भूमिका अहम हो जाती है। कैसे कोई शिक्षक बाल मन से परीक्षा के डर को खत्म करे, यह शिक्षक की योग्यता, अनुभव और दूरदृष्टि पर निर्भर करता है। प्रसिद्ध शिक्षाविद् अखिलेश चंद्र चमोला ने इसी समस्या को पकड़ा और शैक्षिक नवाचार को बढ़ावा देने और उत्कृष्ट अंक पाने के लिए कई महत्वपूर्ण तथ्य सुझाये हैं। चमोला ने इन तथ्यों का संकलन कर उसे किताब का स्वरूप दिया है। उनकी इस किताब का उत्तराखंड के पर्यटन मंत्री सतपाल महाराज ने लोकार्पण किया। चमोला इस पुस्तक को बच्चों में निःशुल्क वितरित करेंगे ताकि बच्चे उनकी सरल और सहज भाषा में सुझाये गये तथ्यों को आत्मसाथ कर सके। अखिलेश चंद्र चमोला की इस प्रेरणादायी पुस्तक की समीक्षा प्रभाारी प्रधानाचार्य डाॅ. कृपाल भंडारी ने की है। पढ़िये डाॅ. भंडारी द्वारा की गई इस पुस्तक की समीक्षा।
ख्यातिप्राप्त शिक्षक अखिलेश चमोला द्वारा लिखित पुस्तक ‘‘शैक्षिक नवाचार एवं क्रियात्मक शोध’ ‘उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने हेतु महत्वपूर्ण सुझाव’’ एक नवाचारी शोध है। उक्त पुस्तक में लेखक ने जहाँ एक ओर शैक्षिक क्षेत्र में हो रहे महत्वपूर्ण परिवर्तनों को समाहित किया है तो वहीं दूसरी ओर बालकेन्द्रीत नवाचार व प्रयोग के आधार पर उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने हेतु 70 से अधिक महत्वपूर्ण सुझावों का वर्णन किया है। साथ ही कक्षा-10 के विगत वर्षो के प्रश्नपत्रों का शैक्षिक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हुए क्रियात्मक शोध के परिणात्मक बिन्दु तक पहुँचकर एक पुस्तक के रूप में अभिलेखीकरण किया है।
पुस्तक में लेखक ने प्रसिद्ध महापुरुषों, शिक्षाविदों व दार्शनिकों के प्रेरणादायी विचारों को भी स्थान दिया है। जिनसे नैतिक मूल्यों एवं जीवन दर्शन का साक्षात बोध होता है। साथ ही कोरोना वायरस के कारण बाधित कक्षा शिक्षण की जगह ऑनलाइन शिक्षण की उपादेयता व महत्ता पर भी विस्तारपूर्वक लिखा है। उन्होंने छात्रों के लिए सर्वोच्च अंक प्राप्त करने के कई महत्वपूर्ण सुझाव साझा किये हैंै। लेखक ने बताया कि वे इस पुस्तक को विद्यालयों को निःशुल्क वितरित करेंगे। जिससे छात्रों में नैतिक, आध्यात्मिक व समाजोपयोगी गुणों का विकास हो सके व जीवन मूल्यों से साक्षात्कार हो सके।
पुस्तक में ऐसे कई तथ्यों का समावेश किया गया है जिससे बच्चों को जीवन में अच्छा से अच्छा करने की ललक पैदा हो तथा उत्कृष्ट अंक प्राप्त करने की भावना जागृत हो सके। निशिचत तौर पर यह पुस्तक शैक्षिक नवाचारों में नवाचारी प्रविधि पर आधारित एक विशिष्ट पुस्तक है जो कि वर्तमान परिस्थितियों में छात्रों का मार्गदर्शन करती है। पुस्तक प्रकाशन हेतु असीम शुभकामनाएं।
समीक्षक के बारे मेंः- इस पुस्तक की समीक्षा डाॅ. कृपाल सिंह भंडारी ने की, जो पेशे से शिक्षक और वर्तमान में प्रभारी प्रधानाचार्य हैं। डाॅ. भंडारी शोधकार्यों में संलग्न रहते हैं, अब तक उनके अनेक शोध पत्र राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। मूलतः चमोली के रहने वाले डाॅ भंडारी लेखन में भी अभिरूचि रखते हैं। उनकी पुस्तक ‘उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासतः श्री नंदादेवी राजजात’ शोधार्थियों के लिए खासी उपयोगी है। डाॅ. भंडारी हिमालयन जन विकास समिति के सचिव भी रहे हैं।