उमेश भंडारी
थराली/चमोलीः कहते हैं न कि मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता हौसलो से उड़ान होती है। यह बात लोगों की गाडियां साफ करने वाले संतोष राम पर सटीक बैठती है। कभी घर की माली हालत और पढ़ाई के डर से स्कूल छोड़ देने वाला संतोष अब गणित के सवाल असानी से हल कर लेते है, वह अंग्रेजी से भी नहीं डरता, विज्ञान उसका प्रिय विषय है। गाडियां साफ करने वाला संतोष हाई स्कूल उत्तीर्ण कर चुका है और उसका सपना अब मैकेनिकल इंजीनियर बनना है।
संतोष के सपनों को उड़ान देने में मददगार बने राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सुनाऊ के प्रभारी प्रधानाचार्य यशपाल बिष्ट। संतोष राम इसी स्कूल में पढ़ता है। अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर संतोष अब 11वीं कक्षा का छात्र है। संतोष के जीवन में बदलाव लोने का श्रेय इस स्कूल के प्रभारी प्रधानाचार्य यशपाल बिष्ट को जाता है। बिष्ट बताते हैं कि संतोष रोड़ किनारे एक गैराज में गाड़ी साफ करता था। लेकिन उसमें पढ़ाई ललक थी। लिहाजा प्रधानाचार्य बिष्ट ने उसे पढ़ाने की ठानी और स्कूल में दाखिला दिलाया। बिष्ट बताते हैं कि धीरे-धीरे उसका पढ़ाई में मन लगा और उसने अच्छे अंकों के साथ हाईस्कूल पास कर लिया है।
नौकरी के साथ पढ़ाई भी
प्रधानाचार्य यशपाल बिष्ट कहते हैं कि संतोष के पिता नहीं हैं। उसके कंधों पर अपने छोटे भाईयों की भी जिम्मेदारी है। वह पार्ट टाइम गैराज में जाॅब कर अपना भरण-पोषण खुद करता है। यही वजह है कि उसने स्कूल छोड़ दिया था। बिष्ट बताते हैं कि हर रोज जब वह संतोष को देखते तो उनका हृदय पीड़ा से भर जाता। लिहाजा उन्होंने निश्चय किया कि संतोष को वह खुद पढ़ायेंगे। इसके लिए उन्होंने संतोष को राजी किया और फिर अपने स्कूल में उसे कक्षा 9 में दाखिला दिलाया। धीरे-धीरे ही सही संतोष का मन पढ़ाई में रमने लगा। नौवीं कक्षा पास कर उसके अंदर आत्मविश्वास जगा। 10वीं बोर्ड परीक्षा के लिए उसने खूब मेहनत की और सेकेंड डीविजन से परीक्षा पास की। बिष्ट कहते हैं कि यह उनके लिए भी सबसे बड़ी खुशी की बात थी कि एक गाड़ी साफ करने वाले बच्चे ने अपने मेहनत से बोर्ड परीक्षा पास कर दी।
संतोष की मेहनत मेरे लिए अहम
प्रधानाचार्य यशपाल बिष्ट कहते हैं कि संतोष को उसकी गरीबी ने पढ़ाई से दूर किया। वह कहते हैं कि जब मैंने उसे पढ़ने के प्रति जागरूक किया तो उसने भी पढ़ाई के लिए हामी भरी। अब वह आगे की भी पढ़ाई करना चाहता है और उसने अपने भविष्य का खाका भी खींच लिया है। वह कहते है कि मैं अब मैकेनिकल इंजीनियर बनूंगा। बिष्ट कहते हैं कि जब वह ऐसा कहता है तो मुझे आत्म शांति का अहसास होता है।
शराब तक बेचनी पड़ी संतोष को
आज मैकेनिकल इंजीनियर बनने का सपना देखने वाला संतोष कभी गलियों में शराब भी बेचा करता था। शिक्षक यशपाल बिष्ट कहते हैं कि संतोष गलियों में शराब भी बेचा करता था, वह ऐसा अपनी गरीबी के चलते करता था। ताकि वह अपना और अपने भाईयों का पेट भर सके। वह कहते है कि संतोष को मैंने कई बार गली में शराब बेचता देखा। एक दिन मेरे से रहा नहीं गया और मैंने उसे खूब डांट लगाई। उसे अपने किये पर खूब पछतावा हुआ और उसी दिन उसने मेरे से वायदा किया कि सर मैं आपके स्कूल में पढ़ना चाहता हूं। मैंने भी उसे कहा कि वह उसे न सिर्फ पढ़ाने के लिए तैयार है बल्कि उसका पूरा खर्च भी उठाने को तैयार है।
संतोष को दिलाया स्कूल में दाखिला
बिष्ट बताते हैं कि इस घटना के बाद संतोष के अंदर काफी बदलाव आये। वह अपने भविष्य के लिए फिक्रमंद हो गया। वह नियमित स्कूल आने लगा। कभी-कभार वह जब स्कूल नहीं आता तो मुझे उसकी चिंता होती। हालांकि वह अपनी रोजी-रोटी के लिए छुट्टी कर लेता था। वह सुबह-शाम गैराज में गाड़ियां धोता और दिन में स्कूल आता। मुझे देखकर वह छुप जाता लेकिन मैं भी उसे काम करते हुए अनदेखा करता ताकि उसे कोई परेशानी न हो। वह भी अपनी पारिवारिक परिस्थिति के चलते लाचार था। बिष्ट कहते हैं कि अब वह हाई स्कूल पास हो गया है वह आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा है। वह करते हैं कि एक शिक्षक के लिए इससे बढ़कर कुछ भी नहीं है।