शिक्षक दिवस विशेषः शिक्षक से केंद्रीय शिक्षा मंत्री तक

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डाॅ. वीरेंद्र बर्त्वाल

देहरादूनः किसान, शिक्षक, पत्रकार, साहित्यकार, राजनेता, शासक। इतने सारे चरित्रों का सफल निर्वाह करना आसान नहीं है, परंतु हर चुनौती से पार पाने वाले के लिए यह कोई कठिन नहीं है। आशावादी, संघर्षशील और विपरीत हालात से भी हंसकर हाथ मिलाने वाले डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक की यही विशेषता है और यही उनकी सफलता का राज। यह संयोग ही कहा जाना चाहिए कि जीविकोपार्जन के लिए उन्होंने सबसे पहले शिक्षण को चुना और कई पड़ावों को पार करते हुए अब केंद्रीय शिक्षा मंत्री के रूप में ख्याति अर्जित कर रहे हैं।

डाॅ. रमेश पोखरियाल ’निशंक’। यह नाम कई विधाओं के लिए प्रसिद्ध है। पौड़ी के पिनानी गांव में गरीब किसान परिवार में जन्मे रमेश पोखरियाल देश में वह नाम है, जो अपने अथक परिश्रम और ललक की बदौलत फर्स से अर्श पर पहुंचा है। बचपन के खेलने-कूदने के दिनों में शिक्षा के लिए उनका संघर्ष क्षेत्र के युवाओं को प्रेरणा देता है। किसी भी परिस्थिति से हार न मानने की उनकी प्रवृत्ति अनेक लोगों के लिए सफलता की राह दिखाती है।

गरीबी में बीता बचपन
पढ़ाई के लिए सात किमी की खड़ी चढ़ाई तय कर स्कूल जाना, विद्यालय से आने के बाद पशुओं के लिए घास, चारा लाना और हल लगाना उनकी मजबूरियों में शुमार था। गांव में पांचवीं तक पढ़े। दसवीं तक की पढ़ाई के लिए और दूर के स्कूल में जाना पड़ा। बर्फ, बारिश, ठंड का सामना कर, पथरीली पगडंडियों को नापकर उन्होंने यहां शिक्षा ग्रहण कर यह साबित किया कि दृढ़ प्रतिज्ञा के आगे विषमता गौण हो जाती है। घर की माली हालत कमजोर थी। मां घर का खर्च का चलाए या बच्चे को पढ़ाए, यह प्रश्न उन्हें उद्वेलित करता था।

चीड़ का छिलका था रोशनी का जरिया
मां की विवशता देख रमेख पोखरियाल नामक इस बालक ने दोनों जिम्मेदारियां अपने कंधे पर ले लीं। इस विद्यार्थी ने टिन के एक बक्से में छोटे-मोटे सामान की दुकान खोली। उससे कुछ आंस बंधी और दो-चार रुपये की आय होने लगी। गांव में बिजली नहीं थी और लैंप के लिए मिट्टी तेल खरीदने की मां की सामथ्र्य नहीं थी। जहां चाह, वहां राह..उन्होंने चीड़ के पेड़ के छिलके की रोशनी से पढ़ाई की। दसवीं की परीक्षा के दौरान एक महीने के लिए स्कूल के निकट एक घुड़साल में बसेरा बनाना पड़ा। किसी तरह दसवीं पास किया। आगे पढ़ने की ललक थी, लेकिन धन का अभाव फिर आड़े आ गया। आखिर कौन मां अपनी संतान की प्रगति नहीं देखना चाहती! मजबूर मां मन मसोसने के सिवा क्या कर सकती थी!

शिक्षण क्षेत्र में उतरे ‘आचार्य’ निशंक
एक रास्ता निकला, रमेश पोखरियाल नामक बालक को शिक्षार्जन के लिए हरिद्वार स्थित एक आश्रम में भेज दिया गया। यहां वे आश्रम के सारे कार्य भी करते। जितना जल्दी हो सके, पढ़ाई पूरी कर घर के खर्चे जुटाना उनका मुख्य लक्ष्य था। उनकी प्रतिभा और शिक्षा के प्रति अगाध श्रद्धा के परिणामस्वरूप रमेश पोखरियाल नामक इस युवक को 1983 में उत्तरकाशी में सरस्वती शिशु मंदिर में आचार्य पद पर नियुक्ति मिल गई। नौकरी पाकर गद्गद रमेश पोखरियाल जी ने मां को यह खबर बताई तो उन्हें लगा जैसे भगवान ने उनके जीवनभर के सभी मनोरथ पूरे कर लिए हों। आखिर घर की आर्थिकी की जद्दोजहद मां के कमजोर कंधों से उतरकर कर रमेश के जवान कंधों पर आ गई। 1985 में रमेश पोखरियाल इसी पद पर पुरोला स्थित शिशु मंदिर में आचार्य नियुक्त हुए। 1987 में 1988 तक ऊखीमठ और जोशीमठ में सरस्वती विद्यामंदिर में प्रधानाचार्य रहे। साथ ही उन्होंने देहरादून में भी शिक्षण किया।

अध्यापक के रूप में उनका कार्यकाल सराहनीय रहा। उन्होंने सफलता के अनेक मानक गढ़े। उनके विद्यार्थी उनके पढ़ाने के तौर-तरीके और सद्व्यवहार से हमेशा प्रसन्न रहते थे। हंसमुख रमेश पोखरियाल का सद्व्यवहार बच्चों को बहुत प्रभावित करता रहा। वे अनुशासनप्रिय, छात्रप्रिय, शिक्षण प्रिय अध्यापक के रूप में प्रसिद्ध रहे। गरीबी और अभावों से जूझने के कारण वे गरीब विद्यार्थियों का दर्द बखूबी समझते थे। अभिभावक उनकी संवेदनशीलता के कायल रहते थे।

आचार्य से पत्रकार और फिर राजनेता
सात साल तक शिक्षण की मुख्यधारा से जुड़े रहने के बाद उन्होंने अपनी प्रतिभा दूसरी ओर मोड़नी चाही और 1989 में वे पौड़ी आकर पत्रकारिता जगत में रम गए। उन्होंने यहां दैनिक सीमांत वार्ता समाचार पत्र आरंभ किया। उस दौर में जब पत्रकारिता मिशन थी, आज की तरह विज्ञापन नहीं मिलते थे और सूचनाओं के इतने माध्यम और साधन नहीं थे। रोज कुआं खोदकर पानी पीना पड़ता था। आर्थिक तंगी जैसी अनेक कठिनाइयों से जूझते हुए इस लक्ष्य में भी शिखर पर गए। फिर 1991 में उन्होंने प्रत्यक्ष जनसेवा के दूसरे माध्यम को हाथ में ले लिया। डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने भाजपा से कर्णप्रयाग विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और पहली ही बार में उत्तर विधानसभा के लिए विजयी रहे। यह सिलसिला चलता रहा। वे राजनीति के ऊबड़-खाबड़ धरातल पर भी सरपट दौड़ते रहे उत्तर प्रदेश में मंत्री पद प्राप्त कर पहाड़ को खास पहचान दिलाई।

शिक्षक से सत्ता के शिखर पर पहुंचे निशंक
यह सिलसिला उत्तराखंड बनने के बाद भी नहीं रुका। यहां कैबिनेट मंत्री के बाद 28 जून, 2009 को राज्य के पांचवें मुख्यमंत्री बने। अपने राजनीति के फलक को विस्तार देते हुए डाॅ. निशंक ने 2014 में हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र से भाजपा से चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री हरीश रावत की पत्नी जैसी भारीभरक उम्मीदवार को पराजित किया। 2019 में भी वे वहीं से जीते और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें मानव संसाधन विकास मंत्रालय (अब केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय) जैसे अहम मंत्रालय का दायित्व सौंपा। यहां राष्ट्रीय शिक्षा नीति सामने लाने समेत अनेक कार्यों के कारण वे खासी लोकप्रियता हासिल कर रहे हैं। शिक्षा को जीवन में उत्थान का प्रमुख आधार मानने वाले डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक शिक्षा जैसी महत्त्वपूर्ण चीज को राजनीति से दूर रखने के प्रबल हिमायती हैं।

लेखक के बारे में- डाॅ. विरेंद्र बर्त्वाल उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार, लेखक और शिक्षक हैं। करीब डेढ़ दशक तक हिंदी पत्रकारिता में सक्रिय रहे डाॅ. बर्त्वाल वर्तमान में केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय के देवप्रयाग परिसर में असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर कार्यरत हैं। टिहरी बडियार गढ़ के मूल निवासी डाॅ. बर्त्वाल ने विभिन्न विषयों पर कई पुस्तकें लिखी। उनकी पुस्तक ‘गढ़वाली गाथाओं में लोक और देवता’ खासी चर्चित रही।

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