देहरादूनः प्रसिद्ध भू-वैज्ञानिक पद्मश्री और पद्मभूषण खड़क सिंह वल्दिया नहीं रहे। उनका 85 साल की उम्र में निधन हो गया। वल्दिया लंबे समय से कैंसर की बीमारी से पीड़ित थे। प्रोफेसर वल्दिया उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में सीमांत जिले आठगांव शिलिंग के देवदार (खैनालगांव) के निवासी थे। उनके निधन से पूरे सीमांत क्षेत्र में शोक की लहर है।वे इन दिनों बेंगलुरु में थे।
प्रोफेसर वाल्दिया का 20 मार्च 1937 को हुआ था जन्म। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जब वह केवल 5 वर्ष के थे तब म्यांमार में द्वितीय विश्व युद्ध की बमबारी के दौरान उनकी सुनने की क्षमता कमजोर हो गई थी। जो आजीवन बनी रही। वाल्दिया हिमालयी भूविज्ञान के गहन जानकार। लखनऊ विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय, सेंटर फॉर एडवांस्ड साइंटिफिक रिसर्च बैंगलोर और कुमाऊं विश्वविद्यालय में रहे प्रोफेसर रहे। वह बाद में कुमायू विवि के कुलपति भी रहे। इसके साथ ही वह देहरादून में वाडिया इंस्टीट्यूट के अध्यक्ष भी रहे हैं।
युवा अवस्था में जॉन हापकिंस विश्वविद्यालय के पोस्ट डॉक्टरल फैलो रहे। उन्होंने कुछ वर्ष पूर्व ‘पथरीली पगडंडियों पर’ नाम से अपनी आत्मकथा प्रकाशित की। वह प्रभावी और अद्भुत व्याख्याता माने जाते थे। भूविज्ञान जैसे विषय को भी वह साहित्यिक शैली में समझाने में सिद्धहस्त थे। हिमालय के प्रतिवर्ष औसतन करीब 5 सेमी उत्तर की ओर जाने और 2 सेमी ऊंचाई की ओर निरंतर उठने के महत्तवपूर्ण शोध मुख्य रूप से प्रोफेसर वाल्दिया के ही हैं। बाद में अन्य भू विज्ञानियों ने भी उनके शोध को आधार बनाया। उनकी दो पुस्तकें ‘हाई डैम्स इन हिमालय’ और ‘संकट में हिमालय’ काफी चर्चित रही।