प्रतापनगर: वन मंत्री हरक सिंह रावत को उस वक्त बड़ा झटका लगा जब ग्रामीणों ने उनके काफिले को बैरंग वापस भेज दिया। दरअसल हरक सिंह रावत रविवार को प्रतापनगर स्थित सेम मुखेम मंदिर के दर्शन करने जा रहे थे। मंदिर के दर्शन जल्दी हो सके इसके लिए वह अपने काफिले के साथ नवनिर्मित डोबरा-चाठी पुल के ऊपर से गुजरने लगे। लेकिन जब इस बात की जानकारी रौलाकोट के ग्रामीणों को मिली तो उन्होंने वन मंत्री को पुल के ऊपर से नहीं जाने दिया। जिसके बाद हरक सिंह को पुल से वापस लौटना पड़ा और दूसरे रास्ते मंदिर गये।
ग्रामीणों का जबरदस्त विरोध
पिछले एक सप्ताह से विस्थापन की मांग को लेकर रौलाकोट के ग्रामीण डोबरा-चांठी पुल के दूसरी ओर धरने पर बैठे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि जब तक उनका विस्थापन नहीं होता है तब तक पुल के ऊपर से वह वाहनों का संचालन नहीं होने देंगे। आज जब उन्हें पता चला कि कैबिनेट मंत्री डोबरा-चांठी पुल से सेम नागराज के दर्शन करने जा रहे हैं तो उन्होंने उनका काफिला रोक दिया और अपनी समस्याएं उन्हें बताई। वन मंत्री ने ग्रामीणों से पुल के ऊपर से जाने देने का आग्रह किया पर ग्रामीणों ने उनकी एक नहीं मानी। इस दौरान डीएफओ कोको रोसे और एसडीएम फिंचा राम चैहान ने भी ग्रामीणों को काफी समझाने का प्रयास किया लेकिन ग्रामीण अपनी मांग से टस से मस नहीं हुए। एसडीएम ने बताया कि ग्रामीणों के न मानने के बाद वन मंत्री भी पुल के ऊपर से वापस लौटे और दूसरे रास्ते से मंदिर की ओर रवाना हुए।
ग्रामीणों की चेतावनी
वन मंत्री हरक सिंह को डोबरा-चांठी पुल पार न करने पर ग्रामीणों ने बताया कि वह लंबे समय से विस्थापन की मांग कर रहे हैं लेकिन सरकार है उनकी एक नहीं सुन रही है। उनका विस्थापन नहीं किये जाने से ग्रामीणों में भारी आक्रोश है। इतना ही नहीं ग्रामीण अपनी मांग को लेकर डोबरा चांठी पुल के दूसरी ओर पिछले एक सप्ताह से धरना दे रहे हैं। वहीं ग्रामीणों ने चेतावनी दी है कि अगर उनका विस्थापन नहीं किया जाता है तो वह डोबरा पुल के ऊपर से वाहनों नहीं जाने देंगे।
क्यों नाराज़ है ग्रामीण
दरअसर यह मामला टिहरी बांध विस्थापन से जुड़ा है। टिहरी बांध निर्माण के दौरान टिहरी शहर सहित सैकड़ों गांवों का विस्थापन किया गया। विस्थापन की लिस्ट में पहले रौलाकोट का आंशिक भाग था लेकिन टिहरी झील बन जाने के बाद यह इलाका बुरी तरह से प्रभावित हो गया। झील बन जाने से गांव की जमीने पानी में समा गई। कुछ जमीन भूस्खलन के चलते झील की ओर सरक रही है। ग्राम प्रधान आशीष सिंह का कहना है कि वर्ष 2008 में उत्तराखंड सरकार द्वारा टिहरी झील के चारों ओर सर्वे कराया गया। जिसमें रौलाकोट गांव भी शामिल था। रिपोर्ट में रौलाकोट गांव को विस्थापित किये जाने की सिफारिश की गई। लेकिन राज्य सरकार ने अभी तक उनके गाँव का विस्थापना नहीं किया। जबकि उनके साथ के दो गांव नकोट और स्यांसू का विस्थापन हो चुका है।
विस्थापन के लिए 114 परिवार चिह्नित
रौलाकोट के प्रधान आशीष सिंह बताते हैं कि जब सरकार द्वारा उनका सर्वे किया गया तो उस दौरान गांव के 114 लोगों को चिह्नित किया गया। लेकिन असल में कुछ और भी परिवार है जिनका विस्थापन होना है। वह बताते हैं कि गांव की संचय भूमि का भी अभी तक कोई बंटवारा नहीं हुआ है। ऐसे में उनके विस्थापन किये जाने की दूर-दूर तक कोई संभावना नहीं नजर आती है। आशीष कहते हैं कि बरसात में यहां समस्या सबसे विकराल हो जाती है। जब ऊपर से आसमान बरस रहा होता है और नीचे से झील जमीन को निगल रही होती है। इस दौरान गांव के लोगों के बीच दहशत का माहौल बना रहता है। आशीष कहते है कि आखिर 10 साल से सरकार को जमीन क्यों नहीं मिल रही है।