बड़ा सवाल: चीन के साथ ‘‘सठे साठ्यम् समाचरेत्’ का व्यवहार क्यों नहीं करता भारत?

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शंकर सिंह भाटिया

लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर माहौल गर्म है। भारत और चीनी सेनाएं आपस में भिड़ गई। इस झड़प से दोनों सेनाओं को बड़ा नुकसान उठाना पड़ा। भारत और चीन के बीच लंबे समय से सीमा विवाद चल रहा है। हाल की घटना के बाद देश भर में चीन के प्रति आक्रोश बढ़ा है। चीन के प्रति भारतीय नीति हमेशा लचर रही है। भारत ने कभी भी मुखर होकर चीन का विरोध नहीं किया। वरिष्ठ पत्रकार शंकर सिंह भाटिया ने अपने लेख में कई मौलिक लेकिन तीखे सवाल उठाये हैं, आप भी पढ़िये यह लेख।

धोखा जिसके खून में है, वह देश है चीन। कोरोना से पूरा विश्व हलकान है। कोरोना वायरस को चीनी वायरस कहा जाता है। अमेरिका ने तो चीन पर लेबोरोटरी में कोरोना वायरस पैदा करने का आरोप लगाया है। यह मानवता के साथ चीन का बहुत बड़ा धोखा है। भारत ने 1962 में चीन से बहुत बड़ा धोखा खाया था। हिंदी-चीनी भाई-भाई की खाल के अंदर चीनी भेड़िया छिपा हुआ था। उसके बाद भी चीन बार-बार भारत को धोखा देता रहा। एक बार फिर लद्दाख के गलवान में भारत ने चीन से धोखा खाया है। बार-बार धोखा खाने के बावजूद भारत, चीन के साथ इमानदारीपूर्ण व्यवहार करता रहा है। भारत को उम्मीद रहती है कि शायद भारत के इमानदार व्यवहार से चीन का चरित्र बदलेगा। लेकिन जिसके खून में धोखा हो वह कभी बदल सकता है? भारत का यह सोचना कि चीन बदल जाएगा, खुद को धोखा देने जैसा नहीं है?

चीन के साथ संबंधों को लेकर कई सवाल मेरे जहन में उठते रहे हैं। जो हमेशा अंदर ही अंदर बुदबुदाते हैं, लेकिन बाहर नहीं निकल पाते। गलवान हादसे के बाद ये सवाल बरबस बाहर आना चाहते हैं। ये सवाल हैं।

चीन हमारे एक पूर्ण राज्य अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा मानता है। हमारे मंत्रियों, नेताओं आदि के अरुणाचल दौरे का खुलकर विरोध करता है। हम कैलाश मानसरोवर पर भी दावा नहीं कर पाते? जो कभी भारत का हिस्सा था। भारत और चीन की सीमा के बीच स्थित बफर देश तिब्बत को चीन हड़प गया। दलाई लामा समेत तिब्बत के लोगों ने भारत में आकर शरण ले ली। इसके बाद भी भारत चीन के इस कृत्य का विरोध करने का साहस क्यों नहीं जुटा पाता है?

अभी छह जून 2020 को लद्दाख में ही भारत चीन के बीच कोर कमांडर स्तर के अधिकारियों की समझौता बैठक हुई। इस बैठक में भारत की तरफ से ले. जनरल स्तर के अधिकारी शामिल हुए थे। जबकि चीन की तरफ से मेजर जनरल स्तर का अधिकारी शामिल हुआ। कूटनीतिक कायदा है कि समझौता वार्ताएं समान स्तर के अधिकारियों के बीच होती है। भारत अपने ले. जनरल रैंक के अधिकारी को चीन के मेजर जनरल स्तर के अधिकारी से वार्ता के लिए क्यों तैयार हो गया? क्या भारत इस सामान्य अंतर्राष्टीय प्रोटोकाल को लागू करवाने में सक्षम नहीं था?

पिछले कई सालों से लद्दाख में चीन सीमा विवाद का बहाना बनाकर 6500 वर्ग किमी से भी अधिक क्षेत्र पर कब्जा कर चुका है। भारत इस बात को स्वीकार करने की हिम्मत नहीं जुटा पाता, क्यों? चीनी कब्जे के सबसे पुख्ता सबूत लद्दाख के चरवाहे हैं। जो साफ तौर पर कहते हैं, चीन हर बार उनके चरागाहों पर कब्जा कर लेता है। जिससे उनके परंपरागत व्यवसाय पर ग्रहण लग गया है।

चीन अपने नियंत्रण वाले क्षेत्र में रेल, रोड समेत तमाम परियोजनाएं बना चुका है। भारत ने कभी इसका विरोध नहीं किया। भारत अपने क्षेत्र में रोड बनाता है तो चीन उसका विरोध क्यों करता है? क्या भारत को चीन के इस विरोध का संज्ञान लेना चाहिए?

चीन भारत के भू-भाग पर कब्जा करता है। उसके बाद उसे अपना क्षेत्र घोषित करता है। गैर विवादित क्षेत्र को विवादित करने का चीन का यह तरीका बिल्कुल भू-माफियाओं जैसा है। जो जमीनों पर कब्जा कर उसे विवादित बनाते हैं, और फिर जोर जबरदस्ती कब्जा कर लेते हैं। ऐसे पड़ोसी के साथ इमानदारी से काम किया जाए तो नुकसान अपना ही होगा। क्यों नहीं भारत चीन के क्षेत्र पर कब्जा कर चीन को उसी की भाषा में जवाब देता?

चीन भारत को अरबों डालर का सामान बेचता है। भारत चीनी सामान का बहुत बड़ा बाजार है। चीनी कंपनियां भारत में बड़े-बड़े ठेके लेती हैं। और चीन सीमा पर इस तरह की हेकड़ी दिखाता हैं। हाल में दिल्ली-मेरठ के लिए बनने वाले एक प्रोजेक्ट का ठेका चीन की कंपनी को मिला है। पहली बार भारत सरकार ने ऐसे ठेकों पर पुनर्विचार करने की बात कही है। चीन के आर्थिक हितों पर सीधे तौर पर चोट किए बिना चीन इसी तरह का व्यवहार करता रहेगा। भारत इस सच्चाई को कब समझेगा?

लेखक के बारे में- शंकर सिंह भाटिया उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं। देहरादून में रहते हैं। मूलतः सीमान्त जनपद पिथौरागढ़ से हैं। अमर उजाला, दैनिक जागरण से जुड़े रहे। सामाजिक-राजनीतिक और पहाड़ के मुद्दों पर प्रखर होकर कलम चलाते हैं। वर्तमान में http://www.uttarakhandsamachar.com न्यूज़ पोर्टल का संचालन करते हैं।

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