आक्रोशः यमुना के बागी बेटों का आरोप, घाटी के खिलाफ रचा जा रहा षड़यंत्र..?

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मसूरीः यमुना घाटी का लंबा इतिहास रहा है, कि जब-जब उसकी उपेक्षा हुई, तब-तब यमुना ने बागी बेटे पैदा किये। उपेक्षित और दमित होने पर यह घाटी बड़े से बड़े तंत्र के खिलाफ लामबंद हुई। फिर चाहे वह राजतंत्र रहा हो या फिर लोकतंत्र। एक बार फिर यमुना घाटी खदबदाने लगी है। भले ही इस खदबदाहट का स्पंदन धीमा हो लेकिन विरोध के स्वर तेज होने लगे हैं। जिस बात की तस्दीक मसूरी में हुई बैठक करती है। आरोप हैं कि जानबूझ कर यमुना घाटी के खिलाफ षड़यंत्र रचा जा रहा है। ये आरोप कोई और नहीं बल्कि घाटी के बुद्धिजीवी, राजनेता और समाजसेवी लगा रहे हैं।

मुख्यतः यमुना घाटी रंवाई, जौनपुर, जौनसार-बावर का क्षेत्र आता है। जिसका क्षेत्रफल तीन जिलों में फैला है। टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून। यमुना घाटी चार धाम में से दो धाम यमुनोत्री और गंगोत्री का प्रवेश द्वार है। भारत सरकार प्रदेश में चारों धामों को सड़क और रेल मार्ग से जोड़ रही है। इसके लिए राज्य में ‘चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना’ यानी ऑल वेदर रोड़ का काम शुरू हो चुका है। जबकि रेल मंत्रालय द्वारा चार धाम को जोड़ने के लिए ‘स्थलीय सर्वे’ कर रिपोर्ट भारत सरकार को सौंपा दी है।

ये दोनों परियोजना न सिर्फ उत्तराखंड के लिए महत्वपूर्ण बल्कि लाखों पर्यटकों, तीर्थ यात्रियों और पर्यटकों के लिए भी लाभदायक है। लेकिन सवाल यह है कि भारत सरकार की इन दो महत्वपूर्ण परियोजनाओं से यमुना वैली क्यों गायब है या फिर जानबूझ कर यमुना वैली को परियोजना में शामिल नहीं किया गया। जानकार बताते हैं कि बिना यमुना घाटी को शामिल किये इन दोनों परियोजनाओं के उद्देश्य को पूरा करने की इजाजत भौगोलिक परिस्थिति कतई भी नहीं देती। ऐसे में कुचक्रों और षड़यंत्रों के ताने-बाने बुनकर परियोजनाओं को पूरा तो किया जायेगा। लेकिन परियोजनाओं का असली मकसद कभी पूरा नहीं हो पायेगा।

जनसांख्यिकी के लिहाज से अगर देखें तो यमुना घाटी में 03 जनपदों की कि 6 विधानसभाएं हैं। जिसमें सहसपुर, विकासनगर, चकराता, धनोल्टी, यमुनोत्री और पुरोला शामिल है। जबकि आठ विकासखंड इस घाटी में आते हैं। जिसमें सहसपुर, विकासनगर, कालसी, चकराता, जौनपुर, नौगांव, पुरोला और मोरी हैं। इतने बड़े क्षेत्रफल में लगभग 12 लाख की आबादी है। लेकिन षड़यंत्र के तहत इतनी बड़ी आबादी को इन महत्वपूर्ण परियोजनाओं से वंचित किया जा रहा है। यही वजह है कि इन परियोजनाओं से यमुना घाटी को जोड़े जाने के लिए पिछले पांच साल से स्थानीय जनता, राजनीतिक विचारधाराओं और सामाजिक संगठनों से जुड़े लोग संघर्षरत है। यह संघर्ष धीरे-धीरे ही सही लेकिन मजबूती के साथ आगे बढ़ रहा है।

स्थानीय लोगों और बुद्धिजीवियों का कहना है कि वह केंद्र और राज्य सरकार से चाहते हैं कि रेल मंत्रालय व केंद्रीय भूतल एवं सड़क परिवहन मंत्रालय इस बावत दिशा निर्देश जारी करें और रंवाई-जौनपुर-जौनसार की की भावनाओं के अनुरूप ‘चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना’ व चारधाम को रेलमार्ग से जोड़ने वाली परियोजना को यमुना घाटी से जोड़े। इस मसूरी में आयोजित बैठक में विशेष तौर टिहरी जिला पंचायत में जिला नियोजन समिति के सदस्य अमेंद्र बिष्ट, कांग्रेस पार्टी के प्रदीप कवि, जोत सिंह रावत, देशपाल पंवार और दिनेश कैंतुरा सहित अन्य बुद्धिजीवी लोग शामिल थे।

  • यमुना घाटी के लोगों की मांगे
  • भारत सरकार की चार धाम कनेक्टिविटी परियोजना से यमुना घाटी को बाहर रखे जाने पर घाटी की जनता ने उत्तराखंड सरकार और भारत सरकार से कुछ मांगी की है।
  • चार धाम राजमार्ग विकास परियोजना (आल वैदर रोड़) को यमुना घाटी की जीवन रेखा कहे जाने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-(123)-507 (हरबर्टपुर से विकास नगर-कालसी-नैनबाग-डामटा-नौगांव-बड़कोट) से जोड़ा जाए।
  • चारधाम को रेलमार्ग से जोड़ने वाली परियोजना में रेलमार्ग को देहरादून से सेलाकुई-सहसपुर-विकासनगर-कालसी-लखवाड़-नैनबाग-डामटा-लाखामंडल-नौगांव-बड़कोट से यमुनोत्री कोे जोड़ा जाए।
प्रस्तावित चारधाम रेलमार्ग परियोजना का मैप
  • दोनों परियोजनाओं से यमुना घाटी को ये होंगे लाभ
  • यमुना घाटी से चार धाम यात्रा का पौराणिक एवं पारंपरिक मार्ग है। दोनों परियोजनाओं के बनने से एक ओर जहां इस घाटी की लगभग 12 लाख की जनसंख्या को लाभ मिलेगा। वहीं दूसरी ओर निकटवर्ती राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, पंजाब और राजस्थान से हर वर्ष आने वाले लाखों तीर्थ यात्रियों, पर्यटकों के लिए यमुनोत्री जाने का सरल, सुलभ एवं सबसे निकटतम मार्ग (कम दूरी का) मिलेगा।
  • यमुना घाटी में दोनों परियोजनाओं के बनने से पर्यटन के नए क्षेत्र, स्थल विकसित होंगे। साथ ही पुराने पर्यटक स्थलों और क्षेत्रों तक पर्यटकों की सरल एवं आरामदायक पहुंच बनेगी। जिससे क्षेत्र में पर्यटन के अवसरों के साथ-साथ रोजगार के अनेकों अवसर पैदा होंगे ।
  • कृषि-बागवानी के क्षेत्र में यमुनाघाटी पूरे प्रदेश में अग्रणी है। इन परियोजनाओं के यहां बनने से कृषि और बागवानी करने वाले काश्तकारों को अपनी फसल को समय पर विपणन के लिए बाजार में पहुंचाया जा सकेगा। जिससे उनकी नगदी और दूसरी फसलों का वाजिब और उचित दाम उन्हें प्राप्त होगा। जिससे पूरे क्षेत्र में लोगों की आर्थिकी बढ़ेगी और उनका आर्थिक उन्नयन होगा।
  • उत्तराखंड के अन्य क्षेत्रों के मुकाबले यमुना घाटी में पलायन बहुत कम है। इन परियोजनाओं के बनने से क्षेत्र में तीर्थाटन, पर्यटन, कृषि-बागवानी तथा अन्य व्यावसायिक गतिविधियां बढ़ेगी तथा पलायन रोकने में भी सरकार को लाभ मिलेगा।
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