खतरे के मुहाने पर खड़ा केदारघाटी का सेमी गांव

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रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड में बेतरतीब विकास की रफ्तार की कीमत आज जोशीमठ चुका रहा है। जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव से सैंकड़ों लोगों के घर उजड़ चुके हैं। सड़कों और घरों में पड़ी दरारें डरा रही हैं। उत्तराखंड में केवल जोशीमठ ही नहीं बल्कि कई गांवों में जोशीमठ जैसे हालात सालों से बने हुए हैं। वहीं कुछ गांव ऐसे है, जहां आज नहीं तो कल इस तरह के खतरों का सामना करना पड़ेगा।

उत्तराखंड विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाला राज्य है। इस वजह से यहां अक्सर लोगों को आपदाओं का सामना करना पड़ता है। उत्तरकाशी में वरुणावत भूस्खलन की त्रासदी हो या फिर 2013 की केदारनाथ आपदा..ये वो जख्म हैं जो आजतक नहीं भरे हैं। वहीं अब जोशीमठ में बने हालात ने इन जख्मों पर नमक छिड़कने का काम किया है। भ-धंसाव जैसे हालातों को कई सालों से झेल रहे गांव अब जोशीमठ को देख सख्ते में हैं। इनमें से एक रुद्रप्रयाग का गुप्तकाशी के सेमी भैंसारी क्षेत्र भी है। यहां के ग्रामीण 2013 की आपदा के दस साल बीत जाने के बाद भी भू धंसाव का दर्द झेल रहे हैं।

विकास या विनाश?
रुद्रप्रयाग का गुप्तकाशी और सेमी भैंसारी क्षेत्र में मन्दाकिनी नदी के कारण हो रहे कटाव से भूधंसाव हो रहा है। यहां भूंधसाव के कारण मकानों, गोशाला और खेतों में दरारें पड़ी हैं, जिस कारण ग्रामीण दहशत में जी रहे हैं। अब, ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत कुंड बाईपास के लिए चट्टानों के कटान और सिंगोली-भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना के बैराज में पानी भरने से गांव पर संकट मंडराने लगा है।

गांव पर दो तरफा खतरा मंडरा
गुप्तकाशी से पांच किमी पहले सेमी-भैंसारी गांव आपदा प्रभावित 23 गांवों में अति संवेदनशील गांवों की श्रेणी में भी शामिल है। तो वहीं सेमी-भैंसारी गांव पर दो तरफा खतरा मंडरा रहा है। एक तरफ ऑल वेदर रोड परियोजना के तहत निर्माणाधीन कुंड-ल्वारा-गुप्तकाशी बाईपास की कटिंग से मलबा व पत्थरों के गांव में गिरने का खतरा बना है। वहीं बरसात में पहाड़ी से भूस्खलन का खतरा है। दूसरी तरफ मंदाकिनी नदी पर निर्मित 99 मेगावाट की सिंगोली-भटवाड़ी जल विद्युत परियोजना के कुंड स्थित बैराज में जल भराव हो रहा है

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे भी बदहाल
सेमी-भैंसी गांव में हो रहे भू-धंसाव के प्रकोप से रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड हाईवे भी बदहाल हो रहा है। बीते कई वर्षों में इस धंसाव जोन की स्थायी मरम्मत के बजाय केदारनाथ यात्रा के नाम पर शासन, प्रशासन और कार्यदायी संस्था द्वारा करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं, लेकिन समस्या जस की तस है। लगातार बढ़ रहे भू-धंसाव से गांव के लोग अनहोनी की आशंका से सहमे हुए हैं, लेकिन सुध लेने वाला कोई नहीं है। यहां विस्थापन तो दूर सुरक्षा के इंतजाम तक नहीं हो पाए हैं।

समय बीतने के साथ बढ़ रहा खतरा
समय बीतने के साथ ही रुद्रप्रयाग में गुप्तकाशी के सेमी गांव की स्थिति भी दयनीय होती जा रही है। इसकी एक वजह ड्रेनेज सीवरेज है। गुप्तकाशी में प्रशासन द्वारा ड्रेनेज सीवरेज की कोई व्यवस्था नहीं की है। बता दें कि गुप्तकाशी के नीचे स्थित सेमी भैंसारी गांव 2013 आपदा के दौरान प्रभावित हुआ था। इन गावों में मन्दाकिनी नदी के अत्यधिक कटाव से ग्रामीणों के मकान क्षतिग्रस्त हो गए थे। शासन प्रशासन ने उस दौरान गांव को विस्थापित करने के साथ ही सुरक्षा को पुख्ता इंतजाम करने की बात कही थी, लेकिन सुरक्षा के दृष्टिगत से यहां कोई कार्य नहीं किए गए। जिस कारण वर्तमान समय में गुप्तकाशी सेमी भैंसारी भू-धंसाव का शिकार हो रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यहां जांच और सुरक्षा के इंतजाम नहीं किए गए तो, गुप्तकाशी सेमी भैंसारी में हो रहे भू धंसाव बाजार तक इसका प्रभाव हो सकता है। गुप्तकाशी के प्रधान प्रेम सिंह का कहना है कि जल्द ही इस भू धंसाव के रोकथाम के उपाय नहीं किए गए तो आने वाले समय में यह गुप्तकाशी बाजार के लिए परेशानी का सबब बनेगा।

शासन-प्रशासन की लापरवाही कहीं पड़ न जाए भारी
कई बार शासन प्रशासन को मन्दाकिनी नदी के कारण हो रहे कटाव की रोकथाम के लिए पत्र सौंपा जा चुका है, लेकिन हमेशा प्रशासन की अनदेखी के कारण ग्रामीणों को मायूस होना पड़ा है। वहीं सरकार की इस उदासीनता को देखते हुए कुछ ग्रामीणों ने स्वयं ही पुर्नवास कर दिया है। लेकिन ऐसे में सवाल यह है कि क्या सेमी गांव का हाल भी जोशीमठ की तरह होगा? यह गांव रहेगा या मिट जाएगा?

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