Shaheed Diwas 2023: बापू की याद को संजोए हुए है देहरादून का ये आश्रम, आजादी से पहले रखी थी नींव

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आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 75वीं पुण्यतिथि है। आज के ही दिन साल 1948 में नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या की थी। महात्मा गांधी की पुण्यतिथि को शहीद दिवस के रुप में भी मनाया जाता है। महात्मा गांधी का देश को आजादी दिलाने में सबसे बड़ा योगदान रहा है। गांधी जी के आदर्श, अहिंसा की प्रेरणा के सामने अंग्रेजों को भी हार माननी पड़ी थी। तो चलिए जानते है राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की पुण्यतिथि के अवसर पर उनके जीवन के सफर के बारे में…..

 

महात्मा गांधी का जीवन परिचय

महात्मा गांधी का पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी है। उनका जन्म गुजरात के पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। गांधी जी के पिता का नाम करमचंद गांधी और माता का नाम पुतलीबाई था। महात्मा गांधी के दो भाई और एक बहन थी। जिसमें वो सबसे छोटे थे। महात्मा गांधी का विवाह 13 साल की उम्र में कस्तूरबा गांधी से हुआ था। 15 साल की उम्र में गांधी पिता बन गए थे। हालांकि उनका पहला पुत्र जीवित नहीं रहा। बाद में कस्तूरबा और महात्मा गांधी के चार बेटे हरिलाल, मणिलाल, रामलाल और देवदास हुए।

 

अंग्रेजों के खिलाफ महात्मा गांधी के आंदोलन  

महात्मा गांधी ने वकालत की पढ़ाई की। इसके बाद वह अंग्रेजों के खिलाफ आंदोलन में शामिल हुए और 1919 में रोलेट एक्ट कानून का विरोध शुरू किया। इस एक्ट के तहत बिना मुकदमा चलाए किसी भी व्यक्ति को जेल भेजने का प्रावधान था। महात्मा गांधी ने सत्याग्रह की घोषणा की और पूरे देश को एकजुट कर आंदोलन किया। गांधी जी ने देश की आजादी के लिए नमक, असहयोग आंदोलन, अवज्ञा आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन चलाया। उनकी दांडी यात्रा तो आज भी मिसाल की तरह पेश की जाती है।

 

नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने कहा था पहली बार राष्ट्रपिता

दरअसल महात्मा गांधी और नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बीच वैचारिक मतभेद थे, लेकिन नेताजी सुभाष चंद्र बोस हमेशा महात्मा गांधी का सम्मान किया। सबसे पहले नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता कहकर पुकारा था। 6 जुलाई 1944 में रंगून रेडियो स्टेशन में अपने भाषण में सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को राष्ट्रपिता कहकर बुलाया था। सुभाष चंद्र बोस ने कहा था, ‘हमारे राष्ट्रपिता, भारत की आजादी की पवित्र लड़ाई में मैं आपके आशीर्वाद और शुभकामनाओं की कामना करता हूं।

 

अहिंसा और सत्य की ताकत

अपने सभी आंदोलनों में महात्मा गांधी ने अहिंसा का परिचय दिया। उनके विचारों में हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं था और वे हमेशा हिंसा के खिलाफ थे। उनके विचारों और आंदोलनों के जरिए किए गए प्रयासों के कारण ही भारत 15 अगस्तफ 1947 को आजाद हुआ।

 

उत्तराखंड से भी खास नाता रहा

देश की आजादी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के योगदान को हमेशा याद किया जाता है। वहीं अगर बात करें देवभूमि उत्तराखंड की,  तो उनका उत्तराखंड से भी खास नाता रहा है। वह स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान देहरादून सहित उत्तराखंड के कई जिलों में आए थे। वहीं श्री श्रद्धानंद बाल वनिता आश्रम महात्मा गांधी की स्मृति के रूप में देहरादून की शान बढ़ाता है। बता दें कि 16 अक्टूबर 1926 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब देहरादून आए थे, तब उन्होंने इस आश्रम की आधारशिला रखी थी। यह आश्रम आजादी से पहले बनवाया गया था। तिलक रोड पर यह अनाथ आश्रम आज भी स्थित है।

 

नाथूराम गोड से ने की थी हत्या

30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड से ने राष्ट्रपिता गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी। गांधी जी को तीन गोलियां मारी गईं थी, जिसके बाद उनकी अंतिम सांस से पहले उनके आखिरी शब्द ‘हे राम’ थे। जिस समय ये घटना घटी वो एक प्रार्थना सभा में हिस्सा लेने जा रहे थे। तभी उन पर गोलियों से हमला किया गया। उनकी हत्या करने के लिए नाथूराम गोड से और हिंदू महासभा के सदस्य नारायण आप्टे को अंबाला जेल में 15 नवंबर 1949 में फांसी दे दी गई।

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