खतरे के मुहाने पर खड़ा खांकरा गांव, झेल रहा है रेल लाइन निर्माण का दंश

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रुद्रप्रयाग। रुद्रप्रयाग में रेल लाइन निर्माण से अब कई गांवों का अस्तित्व खतरें में पड़ गया है। रेल लाइन निर्माण से पूरी तरह से उजड़ चुके मरोड़ा गांव के बाद अब खांकरा गांव में भी ग्रामीणों के घरों में दरारें पड़नी शुरू हो गई है।

जिला मुख्यालय रुद्रप्रयाग से 12 किमी की दूरी पर स्थित खांखरा गांव जिले का प्रवेश द्वार है। यहां के ग्रामीण ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण के चलते दहशत में हैं। पहाड़ों पर विकास के बदले लोगों के आशियाने उजड़ रहे हैं। लोग सालों की मेहनत से बनाए अपने घरों से सड़क पर आने को मजबूर हैं। एक पूरी उम्र बीता चुके लोगों ने कभी सोचा भी नहीं था कि उम्र के आखिरी पड़ाव में पहुंचने पर उन्हें विकास की इतनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। खांकरा निवासी वृद्धा सावित्री देवी का कहना है कि रेल परियोजना के लिए खांकरा में बनाई जा रही सुरंग से उनके आवासीय भवन को खतरा पैदा हो गया है। उनके घर के समीप से गुजर रही परियोजना की संकरी सड़क पर एक तीखा मोड़ है जिससे वाहन गुजरते समय पूरे घर में कंपन होती है। सुरंग निर्माण के चलते आवासीय भवन पर दरारें पड़ गई हैं। अपनी जानमाल की सुरक्षा को लेकर चिंतित महिला कहती हैं कि उनका पति और बेटा फौज में देश के लिए शहीद हो गए हैं और अब प्रशासन द्वारा उनके साथ नइंसाफी की जा रही है। जिला प्रशासन व आरवीएनएल को कई बार पत्र भेज कर अन्यत्र विस्थापन करने की मांग की है, लेकिन कोई सुन नहीं रहा है।

ऐसा नहीं है कि सावत्री देवी पहली महिला है जिसके घर में दरारें आई हैं बल्कि खांकरा गांव के अधिसंख्या मकानों में दरारें आई हुई हैं। ग्रामीण का कहना है कि वो प्रशासन और रेलवे को बोलते बोलते अब थक गये हैं। ग्रामीण रेल लाइन का कार्य बंद करवाने के लिए धरना-प्रदर्शन भी कर चुके हैं, बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हो पाई है। उन्होंने कहा कि कंपनी की ओर से ना तो उनके घरों की मरम्मत की जा रही है और ना ही उनको मुआवजा वितरित किया जा रहा है। ग्रामीणों का यह भी कहना है कि खांखरा के हालात जोशीमठ की तरह होने वाले हैं। यहां घरों में रहना मुश्किल हो रहा है। ग्रामीणों ने कहा कि जल्द ही उन्हें न्याय नहीं मिला तो वे अपने बच्चों और मवेशियों के साथ कंपनी कार्यालय में धरना प्रदर्शन करने को मजबूर हो जायेंगे, जबकि लोगों का निर्माण कार्य से उड़ती धूल के कारण जीना मुश्किल हो गया है। पीड़ित कई बार रेलवे के अधिकारियों से लेकर डीएम तक अपनी फरियाद लगा चुके हैं, लेकिन आज तक उन्हें न ही मुआवजा दिया गया और न ही उन्हें कहीं अन्य जगह शिफ्ट किया जा रहा है।

दरअसल रेल लाइन निर्माण का पहाड़ों विरोध नहीं है, लेकिन इन निर्माण कार्यों में जिस तरह से कार्यदायी कम्पनियां अनिमितायें बरत रही हैं, उसने पहाड़ के कई गांवों को संकट में डाल दिया है। जबकि कई गांव आने वाले समय में खतरे के मुहाने पर खड़े हैं। जरूरत इस बात की है कि इन परियोजनाओं के निर्माण पहाड़ की संवेदनशीलता को देखते हुए किया जाए और प्रभावित परिवारों का समुचित विस्थापन और पुनर्वास किया जाए।

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