संकटः भारत की ठोस कार्रवाई से खतरे में जिनपिंग की कुर्सी

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चीन की आर्थिक स्थित खराब हो रही है। जिसका सीधा असर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की कुर्सी पर भी पड़ रहा है। शी जिनपिंग की पकड़ पार्टी पर कमजोर पड़ रही है। अगर यही आलम रहा तो शी जिनपिंग कुर्सी से हाथ धो बैठेंगे। पूरे विश्व में चीन अविश्वसनीयता का सामना कर रहा है। वहीं उसकी विस्तारवादी और ताकत दिखाने की नीति भी कामयाब नहीं हो रही है। भारत की गलवान घाटी और व्यापारिक मामलों में जवाबी कार्रवाई से उसे जबरदस्त झटका लगा है।

नई दिल्लीः अमेरिका के साथ व्यापार युद्ध और फिर कोरोना की वजह से चीन की आर्थिक हालत खराब हो गई है। ऐसे में वह अपनी सैन्य ताकत या व्यापारिक पकड़ की धमक दिखाने की कोशिश कर रहा है। हालांकि जानकारों का कहना है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की राजनीतिक और कूटनीतिक पकड़ कमजोर हो रही है और उन्हें बड़ा झटका लगा है। भारत की जवाबी कार्रवाई से भी चीन के सुप्रीम लीडर पर सवाल उठ रहे हैं। देशभर में लोकतंत्र के समर्थन के लिए भी आवाज उठने लगी है जिससे चीन की मुश्किले बढ़ती जा रही है।

ऐसा कोई भी संकेत नजर नहीं आ रहा है जिससे पता चले की शी जिनपिंग का कम्युनिस्ट पार्टी पर प्रभावी नियंत्रण है। इस बार न केवल चीन की हालत खराब हो रही है बल्कि राष्ट्रपति के हाथ से भी हालात निकलते नजर आ रहे हैं। 2015-16 के स्लोडाउन में चीनी राष्ट्रपति की छवि पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा था लेकिन यह समय उनपर भारी पड़ रहा है। उस समय राष्ट्रपति ने बिना ज्यादा मेहनत किए अपनी शाख बचा ली थी।

  • हाइलाइट्स
  • अपनी खराब होती आर्थिक हालत को छिपाने के लिए चीन पड़ोसियों पर दादागीरी दिखाने की कोशिश कर रहा है
  • भारत की जबरदस्त जवाबी कार्रवाई के बाद चीनी राष्ट्रपति की नीतियों पर भी सवाल उठ रहे हैं
  • कोरोना की वजह से वैश्विक स्तर पर चीन की छवि खराब हो गई है और उसके साथ काम करने वाले देश भी किनारा कर रहे हैं

मंदी का सामना कर रहे चीन को इस बार पश्चिमी देशों के भी विरोध का सामना करना पड़ रहा है जो कि पहले कई मामलों में चीन के साथ रहते थे। कोरना की वजह चीन की छवि खऱाब हो गई है। चीन के एलीट लोग अकसर पढ़ाई या फिर पर्यटन के लिए पश्चिमी देशों की यात्रा किया करते थे जो कि अब अपने ही देश में रहने को मजबूर हैं।

BRI प्रॉजेक्ट को भी लगा धक्का
चीन का महत्वाकांक्षी प्रॉजेक्ट बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को भी जोरदार धक्का लगा है। इस प्रॉजेक्ट के माध्य्म से वह अपने राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल करना चाहता था। चीन पर आरोप है कि उसने खतरनाक कोरोना वायरस को छिपाया और पूरे विश्व में फैला दिया। अब देश बीआरआई के मामले में भी कर्ज की रीशेड्यूलिंग की मांग कर रहे हैं।

वर्चस्व को चुनौती
हॉन्ग कॉन्ग में लगाए गए प्रतिबंधों की वजह से भी शी जिनफिंग को आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। एक छोटे समय के लिए राष्ट्रवाद का ज्वार उनको बचाए रखने में कामयाब हो सकता है लेकिन लंबे समय के लिए यह भी कारगर नहीं होगा। इस समय शी जिनपिंग के लिए अपनी जनता की नजरों में पार्टी का वर्चस्व बनाए रखना बहुत बड़ी चुनौती है।

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