1962 से वीरान पड़ा चीन सीमा का जादूंग गांव फिर होगा आबाद, पर्यटकों को भी मिलेगी ठहरने की व्यवस्था

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उत्तरकाशी। उत्तरकाशी में साल 1962 से वीरान पड़ा चीन सीमा पर स्थित जादूंग गांव एक बार फिर से आबाद होगा। गांव में खंडहर हो चुके घरों के जीर्णोद्धार की योजना पर काम शुरू हो गया है। जिसके बाद जादूंग गांव के ग्रामीणों को फिर से उनके मूल गांव में बसाया जा सकेगा। इसके साथ ही इस गाव में पर्यटन गतिविधियां संचालित होने के साथ पर्यटक भी यहां पर स्टे कर सकेंगे।

वास्तुविद ने किया अवलोकन 

केंद्र और राज्य सरकार की सीमांत गांव को दोबारा बसाने की योजना के तहत हाल में वास्तुविद केसी कुड़ियाल ने गांव में बने पुराने घरों के जीर्णोद्धार के लिए उनका अवलोकन किया। उन्होंने बताया कि गांव में छह भवन खंडहर हो चुके हैं, जिनके जीर्णोद्धार के साथ कुल दस घर तैयार किए जाएंगे। इसके लिए जल्द ही डीपीआर तैयार किया जाएगा।

वाइब्रेंट विलेज योजना के तहत जादूंग गांव विकसित 

केंद्र सरकार ने देश के सीमावर्ती गांवों के विकास के लिए वाइब्रेंट विलेज योजना तैयार की है। इसी योजना के तहत यहां चीन सीमा से लगे जादूंग गांव को फिर से बसाने की योजना है। जिसके तहत गांव में खंहडर हो चुके घरों का जीर्णोद्धार किया जाएगा। गांव के जीर्णोद्धार के लिए प्रदेश सरकार के पर्यटन विभाग ने राज्य के जाने-माने वास्तुविद केसी कुड़ियाल की कंपनी केसी कुड़ियाल एंड एसोसिएट्स को जिम्मेदारी सौंपी है।

प्राचीन स्वरूप में होगा जीर्णोद्धार

हाल में गांव का दौरा कर लौटे वास्तुविद केसी कुड़ियाल ने बताया कि सीमांत जादूंग गांव में वर्तमान में छह घर हैं, लकड़ी और पत्थर से बने ये सभी घर खंडहर में तब्दील हो चुके हैं।  इन सभी की नाप-जोख की गई है। जिसके बाद इन घरों का प्राचीन स्वरूप में जीर्णोद्धार किया जाएगा। बताया कि इसके साथ ही यहां स्थित लाल देवता मंदिर सहित कुछ अन्य मंदिरों को भी संवारा जाएगा। उन्होंने दस दिन में इसके लिए डीपीआर तैयार कर लेने की बात कही। उन्होंने  बताया कि राज्य सरकार गांव के जीर्णोद्धार के लिए दस करोड़ रुपए का बजट खर्च करने को तैयार है। बताया कि गांव के आबाद होने से क्षेत्र में पर्यटन के साथ सामरिक मजबूती भी मिलेगी।

भारत-चीन युद्ध के दौरान खाली हुआ था गांव 

गौर हो कि भारत-चीन सीमा पर बसा नेलांग व जादूंग गांव कभी आबाद हुआ करता था. जिसमें जाड़-भोटिया समुदाय के करीब 50 परिवार निवास करते थे। लेकिन साल 1962 में भारत-चीन युद्ध के दौरान इन दोनों गांवों को खाली कराया गया। नेलांग गांव में अब ज्यादातर क्षेत्र में आईटीबीपी व सेना काबिज है, जिसके चलते यहां पुराने घर नहीं बचे हैं। हालांकि जादूंग में पुराने घरों के अवशेष बचे हैं। जिसके बाद जादूंग गांव में बने पुराने घरों के जीर्णोद्धार की योजना पर काम करना शुरू कर दिया है।  लेकिन नेलांग घाटी में अब तक इनर लाइन की बंदिश बरकरार है। जिसको लेकर भी कार्य चल रहा है। जबकि इन दोनों गांवों में एसटी परिवार के लोग निवास करते थे।

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