खेतीः इस तरह करें पहाड़ी पालक की खेती, होगी बंपर कमाई

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कृषि डेस्कः पहाड़ी पालक की मांग बाजार में खूब रहती है। क्योंकि यह एकदम जैविक फसल है। जैविक होने के साथ इसके स्वाद और पौष्टिक गुणों की वजह से लोग इसे खरीदना पसंद करते हैं। पहाड़ी पालक गहरे हरे पत्ते वाली सब्जी है। इसकी पत्तियों का आकर देसी पालक से काफी भिन्न होता है। पहाड़ी पालक की खेती मुख्य रूप से उत्तराखंड के सभी पर्वतीय जिलों में बड़े पैमाने पर होती है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश, जम्मू -कश्मीर और पूर्वोत्तर राज्यों में पहाड़ी पालक की खूब खेती होती है। पहाड़ी पालक की सब्जी में आलू, बैगन, प्याज, पनीर मिलाया जाता है। पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी स्वादिष्ट ‘कापली’ बनाई जाती है। पहाड़ी पालक और कंडाली को मिक्स कर भी स्वादिष्ट साग (कापली) बनाई जाती है। उत्तराखंड के अधिकांश होम स्टे पर पहाड़ी पालक और कंडाली के साग की बहुत डिमांड रहती है। इसकी पत्तियों से सॉस भी बनाया जाता है। पहाड़ी पालक को पर्वतीय प्रदेशों में सर्दी के मौसम में उगाया जाता है। हालांकि इसकी बुआई सितम्बर माह से शुरू हो जाती है। आज हम अपने इस लेख में आपको पहाड़ी पालक की उन्नत खेती के बारे में बताएंगे। जोकि भविष्य में आपको खूब मुनाफा देगी, साथ ही यह फसल आपके स्वास्थ्य के लिए भी फायदेमंद होगी।

पहाड़ी पालक की जलवायुः पहाड़ी पालक ठंडे मौसम वाली फसल है। इसमें पाले को सहने की विशेष क्षमता होती है। ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों जहां बर्फ गिरती है वही इसकी खूब खेती की जाती है। हालाँकि इसके उत्पादन के लिए मृदु जलवायु की आवश्यकता होती है। तापमान में बढ़ोतरी होने से पहाड़ी पालक की वृद्धि और विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। जिससे इसके उत्पादन में कमी आती है। पहाड़ी पालक की फसल को कई तरह की भूमि में उगा सकते है। लेकिन इस फसल के सफल उत्पादन हेतु उचित जल निकास दोमट भूमि सर्वोत्तम मानी गई है। पालक की फसल थोड़ी क्षारीय मृदा को भी सहन करने में सक्षम होती है और लवणों को ज्यादा मात्रा में भी सहन कर लेती है।

खेत की तैयारी और उन्नत बीजः इस फसल की प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल की मदद से करें। जुताई के बाद पाटा जरूर लगाएं। पहाड़ में संकरे खेतों को कुदाल से खोदे फिर उसकी मिट्टी को बारीक और समतल करें। इसके बाद पालक के बीजों को उचित तरीके से बोएं। पहाड़ी पालक की बाजार में कोई उन्नत किस्म नहीं है लेकिन पहाडों में आपको पालक के जैविक बीज आसानी से घरों में मिल जायेंगें। हालांकि छोटे कस्बों या गांव की दुकानों पर भी घर के बीज मिल जाते हैं। 1 किलोग्राम बीज प्रति नाली के लिए पर्याप्त हैं।

बीजोपचारः पहाड़ी पालक को बोने से पहले रात को इसके बीजों को पानी में भिगोए ताकि इसका अंकुरण समान रूप से हो सके। बोने से पहले कई किसान बीजों के साथ खेती की मिट्टी भी मिला देते हैं। ताकि इसकी नमी बरकरार रहे और बीज बोते समय यह उचित दूरी पर गिर सके। फसल को फफूंदीजनक रोगों से बचाने के लिए घरेलु तरकीब का इस्तेमाल कर सकते हैं। फसल को पलेवा करके बोना चाहिए और बोने के कुछ दिन बाद ही इसकी पहली सिंचाई करनी चाहिए। इसकी 6 से 7 दिन के अंतराल पर सिंचाई करनी चाहिए।

पहाड़ी पालक बोने का समयः पहाड़ी पालक को पर्वतीय क्षेत्रों में सितम्बर माह से बोना शुरू कर दिया जाता है। हालांकि कई जगह इसके बोने का समय अलग-अलग है। बोने के 3 से 4 हफ्ते में पहाड़ी पालक पहली कटाई के लिए तैयार हो जाता है। कटाई से पहले इसकी अच्छे से गुडाई की जाती है। ताकि इसके साथ जमने वाली अनावश्यक घास हटाई जा सके। इसके उपरांत 10 से 20 दिनों के अंतराल पर कटाई करनी चाहिए। पूरी फसल की अवधि में 6 से 8 बार कटाई की जा सकती है। पहाड़ी पालक की उपज मौसम और भूमि की दशाओं, फसल की देखभाल पर निर्भर करती है।

नोटः यदि आपके पास खेती-किसानी से संबंधित कोई जानकारी है, तो आप हम से साझा कर सकते हैं। हम आपके द्वारा दी जाने वाली जानकारी को प्रमुखता से प्रकाशित करेंगे। इसके साथ ही पंचायत स्तर पर हो रहे विकास कार्यो, घपले-घोटालों से जुड़ी जानकारी आप हम तक पहुंचा सकते हैं। हम से संपर्क करें- फोन नंबर-+91886588289, e-mail- infogaontoday@gmail.com

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