उमेश भंडारी
देहरादूनः बेरोजगारी से उपजी परिस्थितियों पर तंज करता ‘नौकारी’ गीत इन दिनों उत्तराखंड की वादियों में छाया हुआ है। यूट्यूब पर लांच होते ही नौकरी गीत को हजारों लोगों ने देखा और पसंद किया। बेरोजगार युवाओं पर केंद्रित यह गीत उनकी स्थितियों को बयां करता है। गीत में एक पिता अपने बेरोजगार बेटे को नौकरी के मायने बता रहा है। दरअसल पहाड़ी समाज में नौकरी की अहमियत हमेशा रही है, पहाड़ का दुर्भाग्य रहा है कि वहां के युवाओं के सामने हमेशा नौकरी नाम पर समिति विकल्प रहे हैं।
एक लम्बे समय तक नौकरी के नाम पर पहाड़ के युवाओं के पास फौज और होटल दो ही विकल्प रहे। जो आज भी कुछ हद तक बदस्तूर जारी है। वर्तमान समय में युवाओं के पास नौकरी के कई अवसर हैं लेकिन हर कोई सरकारी नौकरी को ज्यादा अहमियत देता है। सरकारी नौकरी के अवसर सीमित होने के कारण कई युवा बेरोजगारी का दंश झेलते हैं। उन्हीं बेरोजगार नौजवानों की परिस्थित को रेखांकित करता है ‘नौकरी’ गीत। जिसे गाया है ‘दादू गोरिया’ फेम दर्शन फस्र्वाण ने। अपनी मखमली आवाज से दर्शन फर्स्वाण ने एक बार फिर लोगों को अपनी ओर आकर्षित किया है।
कौन हैं दर्शन फर्स्वाण
दर्शन फर्स्वाण गढ़वाल के उभरते युवा कलाकार हैं। जो गायन के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बना रहे हैं। दर्शन न सिर्फ गायकी करते हैं बल्कि वह अच्छे गीतकार भी हैं। संगीत के प्रति उनकी अपार श्रद्धा उन्हें वशिष्ट बनाती है। उनके गीतों में ऐसी लचक है जो पहाड़ की वास्तविकता को बयां करती है। गायन के अभी तक के सफर में दर्शन ने अपने प्रखर स्वर के दर्शन कर दिये है। उनका गाया हुआ ‘दादू गोरिया’ गीत जबरदस्त हिट हुआ। इसी गीत ने दर्शन फर्स्वाण को पहचान दिलाई।
दर्शन खुद कहते हैं कि इस गीत के लिए उन्होंने खूब मेहनत की। रात-दिन इस गीत को कम्पोज करने में लगे रहे। जब गीत लांच हुआ तो उत्तराखंड को एक नए गीतकार के दर्शन हुए। वह कहते हैं कि ‘दादू गोरिया’ गोलू देवता के आह्वान से संबंधित है। जिसे उन्होंने देव अनुष्ठानों वह आहवानों में सुनकर तैयार किया। वह कहते हैं कि जल्द ही वह दादू गोरिया का दूसरा भाग लांच करने वाले हैं। हालांकि अभी इस पर काम चल रहा है।
कैसे हुई गायन की शुरूआत
गांव के हर बच्चे की तरह दर्शन भी गाहे-बगाहे गुनगुनाते रहते थे। लेकिन कोई इसी में रम जाता है और कोई इस विधा से खुद को अलग कर लेता है। दर्शन कहते हैं कि गायकी का चस्का उन्हें बचपन में लग गया था। चमोली के रतगांव के रहने वाले दर्शन कहते हैं कि हम जिस क्षेत्र से आते हैं वह सीमांत इलाका है। लेकिन यहां आपको जिंदादिल इंसान मिलेंगे। जो खुद को गीतों में उलझाये रखने का हुनर जानते हैं। यही हुनर उन्हें विरासत में मिला। दर्शन बताते है कि पहली बार उन्होंने कक्षा चार में स्टेज पर गाना गाया। यहीं से गायन का सफर वह मानते हैं। वह कहते हैं कि एक बार उन्हें ब्रह्मताल-भेंकलताल मेले में प्रतिभाग करने का अवसर मिला तो उनके गायन को लोगों ने खूब पसंद किया। धीरे-धीरे आसपास के गांव के लोग उन्हें विभिन्न कार्यक्रमों, स्कूलों और मेलो में बुलाने लगे और यह सफर आ भी चलता जा रहा है।
‘मेरी पराणी’ पहली एल्बम
दर्शन फस्र्वाण बताते हैं कि जब वह डीएवी पीजी काॅलेज पढ़ने आये तो उन्होंने यहां भी विभिन्न अवसरों पर अपनी परफार्मेंस दी। पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने उन गीतों को कम्पोज करना शुरू किया जिन्हें वह गांव में गाय चराने के दौरान गाया करते थे। वर्ष 2015 में उन्होंने अपनी पहली एल्बम ‘मेरी पराणी’ लांच की। जिसे लोगों ने खूब पसंद किया। दर्शन कहते हैं कि इसके बाद उन्होंने ‘कुंजा फुना’, ‘ओ रजुमा’, ‘हिमगिरि की चेली’, ‘शिव जटाधारी’, ‘चांचरी’ गीत गाये। जो उनके यूट्यूब चैनल पर उपलब्ध है। लेकिन सबसे बड़ी पहचान उन्हें तब मिली जब उनका गीत ‘दादू गोरिया’ लांच हुआ। दर्शन कहते हैं कि इस गीत पर उन्होंने कड़ी मेहनत की। लिहाजा गोलू देवता का आर्शीवाद उन्हें मिला और रातों-रात वह गायन के क्षे़त्र में जाना पहचाना चेहरा बन गये।
कई जहग दे चुके परफार्मेंस
दर्शन कहते हैं कि उनके गीतों ने उन्हें एक अलग पहचान दी। उनके गीतों में पहाड़ की लोक संस्कृति की झलक मिलती है। जो समाज को एक संदेश देने का काम करती हैं। वह बताते हैं कि पहाड़ की जो गायन शैली है अपने आप में अनूठी है, जिसका संरक्षण किया जाना चाहिए। वह कहते हैं कि उनका इलाका कुमाऊनी और गढ़वाली संस्कृतियों संगम है। लिहाजा इसकी झलक उनके गानों में भी दिखाई देती है।
दर्शन बताते हैं कि वह अब तक कई जगह परफार्मेंश कर चुके हैं। वह उत्तराखंड के अलावा दिल्ली, बेंगलुरु, जयपुर, अमृतसर, बरेली, लखनऊ, चंड़ीगढ़, लुधियाना सहित अनेक स्थानों पर आयोजित कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर चुके हैं। वह अपनी गायकी से उत्तराखंडी संस्कृति को निरंतर आगे बढ़ाने के काम में जुटे हैं। वह कहते हैं कि उनके गीतों में पहाड़ों का जनजीवन, देव आह्वान, अनुष्ठान, पौराणिक कथाओं का पुट हमेशा बना रहता है। ठेठ पहाड़ी बोली, बधाणी मझकुमयाँ का मिश्रण गीतों में बना रहता है।