हाईकोर्ट नैनीताल ने उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति और लोकायुक्त संस्थान को सुचारु रूप से संचालित करने को लेकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी सरकार से 24 घंटे के भीतर जवाब पेश करने को कहा है। लोकायुक्त मामले से जुड़ी जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी और न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ ने यह आदेश दिए।
हाईकोर्ट ने पिछली तिथि को सरकार से शपथ पत्र के माध्यम से यह बताने को कहा था कि लोकायुक्त की नियुक्ति के लिए अभी तक क्या किया और जब से यह संस्थान बना है, तब से 31 मार्च 2023 तक इस पर कितना खर्च हुआ, लेकिन सरकार ने अभी तक इसका जवाब नहीं दिया।
जनहित याचिका में कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नहीं की है। लोकायुक्त संस्थान के नाम पर सालाना दो से तीन करोड़ रुपये खर्च हो रहे हैं। लोकायुक्त न होने के कारण घपले घोटालों की सुनवाई नहीं हो रही।
राज्य की हर जांच एजेंसी का नेतृत्व राजनीतिक हाथों में: याचिकाकर्ता
हल्द्वानी निवासी रविशंकर जोशी की ओर से दायर याचिका में यह भी कहा गया है कि राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन हैं। जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनीतिक नेतृत्व के हाथों में है। वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नहीं है, जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के किसी भी राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत करवा सके। विजिलेंस भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है, जिसका सम्पूर्ण नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है। इसलिए प्रदेश में लोकायुक्त की तैनाती होना जरूरी है।
खाली बैठे हैं कर्मचारी
2002 में गठन के बाद से लोकायुक्त कार्यालय पटेलनगर स्थित पयटन विभाग के गेस्ट हाउस में चल रहा है। वर्तमान में लोकायुक्त कार्यालय में 28 कर्मचारी तैनात हैं। इस कारण शासन अब उक्त कर्मचारियों को मिलते-जुलते कामकाज वाले विभागों या संस्थाओं में भेजने की तैयारी कर रहा है। सूत्रों के अनुसार बीते दिनों मुख्य सचिव की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में इस पर सहमति बन चुकी है। इसी आधार पर कुछ कर्मचारियों को रेरा ट्रिब्यूनल में भेजा जा सकता है। इसी के साथ सरकार लोकायुक्त कार्यालय को भी मौजूदा भवन से शिफ्ट करने की तैयारी कर रही है।