देहरादून: उच्च शिक्षा के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान करने वाले शिक्षकों को उत्तराखंड सरकार अब सम्मानित और प्रोत्साहित करेगी। राज्य सरकार ऐसे शिक्षकों को ‘डाॅ. भक्त दर्शन उच्च शिक्षा गौरव पुरस्कार’ प्रदान करेगी। उत्तराखंड सरकार पहली बार अपने शिक्षकों को यह सम्मान देने जा रही है। जिसके लिए बकायदा उत्कृष्ट शिक्षकों का चयन कर दिया गया है। रविवार 01 नवम्बर को प्रातः 11 बजे दून विश्वविद्यालय में प्रदेश के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत और उच्च शिक्षा मंत्री डाॅ. धन सिंह रावत ‘डाॅ. भक्त दर्शन पुरस्कार’ से शिक्षकों को सम्मानित करेंगे। इस दौरान उच्च शिक्षा जगत की कई हस्तियां भी मौजूद रहेंगी। साथ ही इस मौके पर डा. भक्त दर्शन की दोनों पुत्री श्रीमती निर्मला नेगी और श्रीमती मीरा चैहान भी रहेंगी।
ये शिक्षक होंगे सम्मानित
‘डाॅ. भक्त दर्शन पुरस्कार’ 05 उत्कृष्ट शिक्षकों को दिये जाने का प्रावधान है। लेकिन पहली बार इसे 04 शिक्षकों को दिया जायेगा। इन शिक्षकों का चयन उच्च शिक्षा विभाग द्वारा गठित समिति की सिफारिश पर किया गया। इस बार डाॅ. भक्त दर्शन सम्मान पाने वाले शिक्षकों में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय रामनगर के प्राचार्य डाॅ. मोहन चंद्र पाण्डेय (वाणिज्य विषय), एम.बी. काॅलेज हल्द्वानी के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. एस.डी. तिवारी (विज्ञान), पं. ललित मोहन शर्मा राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय ऋषिकेश के एसोसिएट प्रोफेसर डाॅ. सतेन्द्र कुमार (साहित्य) एवं प्रोफेसर डाॅ संजय कुमार (इतिहास) शामिल हैं।
कौन थे डाॅ. भक्त दर्शन
डाॅ. भक्त दर्शन उत्तराखंड की महान विभूतियों में से एक है। पौड़ी गढ़वाल के मूल निवासी भक्त दर्शन स्वतंत्रता सेनानी और प्रख्यात शिक्षाविद् थे। उनका वास्तविक नाम राजदर्शन सिंह रावत था। लेकिन राजनीतिक चेतना विकसित होने के बाद उन्होंने अपना नाम भक्त दर्शन कर लिया। शिक्षा प्राप्त करते हुए आप स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। 1929 में ही डॉ. भक्त दर्शन लाहौर में हुए कांग्रेस के अधिवेशन में स्वयंसेवक बने। स्वतंत्रता आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले डाॅ. भक्त दर्शन ने लोकसभा में गढ़वाल का प्रतिनिधित्व किया। वह 1952 से लगातार चार बार लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। सन् 1963 से लेकर 1971 तक वह जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री और इंदिरा गांधी के मंत्रिमंडल के सदस्य रहे। केंद्रीय शिक्षा मंत्री रहते हुए उन्होंने कई अभिनव पहल की।
1971 में सक्रिय राजनीति से संन्यास लेने वाले डाॅ. भक्त दर्शन 1972 से 1977 तक कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति रहे। कई महत्वपूर्ण पदों को सुशोभित करने वाले डाॅ. भक्त दर्शन एक कुशल लेखक भी थे। उन्होंने ‘गढ़देश’, ‘कर्मभूमि’ का सम्पादन भी किया, साथ ही डॉ. भक्तदर्शन जी ने अनेक उपयोगी ग्रंथ लिखे और सम्पादित किये। इनमें श्रीदेव सुमन स्मृति ग्रंथ, गढ़वाल की दिवंगत विभूतियाँ (दो भाग), कलाविद मुकुन्दी लाल बैरिस्टर, अमर सिंह रावत एवं उनके आविष्कार तथा स्वामी रामतीर्थ पर आलेख प्रमुख हैं। उन्यासी वर्ष की उम्र में 30 अप्रेल 1991 को देहरादून में डॉ. भक्तदर्शन का निधन हो गया।