सवालः क्या चम्बा की रौनक छीन लेगी सुरंग…?

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शीशपाल गुसांई

देहरादूनः ऋषिकेश-धरासू जाने वाले नेशनल हाईवे पर चम्बा के नीचे करीब साढ़े चार किलोमीटर लंबी सुरंग खोद दी गई है। यह सुरंग चारधाम परियोजना यानी ऑल वेदर रोड का हिस्सा है। इस पर इसी साल अक्टूबर से यातायात चलने लगेगा। इस सुरंग को लेकर चंबा को पहले सुरक्षा का खतरा था क्योंकि यह चंबा शहर के ठीक नीचे बनी है। लेकिन सुंरग बनने के बाद खतरा न सिर्फ चम्बा का है कि बल्कि यहां के व्यापार चैपट होने की चिंता भी सताने लग गई है।

चंबा के नीचे करीब आधा किलोमीटर की सुरंग बन जाने से यह तो तय हो गया है कि, यदि पैसा है तो ठेकेदार हिमालय को खोद देंगे। 86 करोड़ रुपये इसके लिए जारी किए गए थे, रात दिन काम से यह सुरंग बन गईं। जो तीर्थ यात्री चंबा बाजार में भीड़ बढ़ाते थे, वह अब सीधे टनल से जा आ सकेंगे। लेकिन इस सुविधा में चम्बा वासियो का व्यापार और चैपट हो जाएगा। यात्रियों की रंगत देखने को नहीं मिलेगी. हां बीआरओ ने उनकी दुकानें भी बचानी थीं। जो उन्होंने पीढ़ियों से पाई पाई कर जोड़ी हुई हैं।

चम्बा नगर के पास बनी सुरंग

जब पुरानी टिहरी था। क्या मिजाज और तड़ी थी इस शहर की. कोई सामने आए तो चंबा के लोग हर दल के एक छाते के नीचे आकर डुकरते थे। मुकाबला करते थे। शहर में सभी मे एकजुटता देखी गई। शहर डैम के पक्ष में इसलिए रहा कि डूबने के बाद हमारे दिन आएंगे। और यह दूसरे नम्बर का था भी। लेकिन विधाता तो कुछ और ही कर रहा था। शहर की पहली कमर तब टूटी जब 2007- 8 में सुवाखोली से उत्तरकाशी जिले, जौनपुर, थौलधार ब्लॉक का ट्रैफिक डाइवर्ट होने लगा, क्या जज, क्या डीएम, क्या विधायक, क्या मंत्री, क्या पब्लिक सब करीब 60 किलोमीटर के फेर में नहीं पड़ना चाहते थे। इसलिए उन्होंने शॉर्टकट चुना। सुवाखोली से भवान तक तो मोटर मार्ग था ही, आगे नगुण तक बनाया गया। चंबा सुस्ताने लगा।

पहले गजा तहसील नहीं थीं, अब बन गई। गजा, चाका बड़े बाजार हो गए। पहले क्विली पाल कोट पट्टी वाले चम्बा गुड़ इत्यादि के लिए आते थे। अब छोटे छोटे मार्किट की संख्या बढ़ गई है। आकार में गजा ने तो रिकार्ड तोड़ रहा है। नकोट, खाड़ी ,आगराखाल, रानीचैरी, बादशाहीथौल तक के लोग यहाँ आते थे। चंबा में हर दिन मेला लगा रहता था। मैं जब नई टिहरी से गांव जाता था, सब्जियां, मिठाई यहीं से ले जाता था। सामान की क्वालिटी थीं यहाँ। क्योंकि इसने हाइवे में जन्म लिया था। नई टिहरी जब शुरुआती तौर पर बस रहा था तब वहां का भी मार्किट चंबा था। मैंने बहुत बाद तक नई टिहरी के लोगों को हीटर, बेड, चंबा से खरीदते देखा। जब पुरानी टिहरी शहर का बचे लोग 2005 के बाद बौराड़ी में बस गए, तब चंबा की रौनक पर और असर पड़ गया। बेड और हीटर की दुकाने बौराड़ी में खुल गई।

चंबा के नीचे इस सुरंग 440 मीटर, और 4.1 किलोमीटर सड़क पर 86 करोड़ खर्च किया जा रहा है। यह पैसा 12 हजार करोड़ का ऑल वेदर रोड प्रोजेक्ट का हिस्सा है। इसे बीआरओ बना रहा है। उससे भी ठेकेदार ने ठेका लिया है। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण यह सड़क बीआरओ के गठन से उसी के पास है।

सुरंग के अंदर का दृश्य

आज से 20 साल पहले तक नई टिहरी में शहर में शराब की दुकान नहीं थीं, चंबा से कमाण्डर (जीप) पक्की शराब लाई जाती थीं। शौकीन लोग पैसा इक्कट्ठा कर चम्बा से मदिरा मंगाते थे। जीप में एक आदमी सबकी बोतल, ले आता था। यह सस्ता रास्ता होता था। नई टिहरी में बर्फ पड़ती थीं। जो चंबा तक चादर ओढ़ लेती थी। 2 बजे के बाद सड़क में बाघ डुकरने आ जाते थे। फिर कमांडर वाला किसी और को भी डर के मारे साथ ले लेता था। ऐसी कमांडर शाम को चलती थीं। लोग नई टिहरी बस अड्डे, या ढाईजर में इंतजार करते थे। नई टिहरी के लोगों व दुकानदारों ने पक्की दारू चम्बा से मंगाई जरूर, लेकिन कभी अवैध नहीं बेची। उनके मन में सात आठ किलोमीटर नजदीक है का मूड रहता था। चंबा का जो स्वरूप था वह तब देखने लायक था। गांव के लोगों के जैसे पैर चंबा नगर में पड़ते थे, उन्हें देहरादून का पल्टन बाजार में होने का अहसास होता था। लेकिन समय के साथ बदलाव आ गया। चंबा के आसपास के गांवों से कुछ प्रतिशत पलायन वैसे ही हुआ जैसे पहाड़ के हर ब्लॉक से हुआ। पलायन से भी बाजार में अंतर पड़ा।

चम्बा चैक में यदि 5 मिंट खड़े हो जाये। तो ऋषिकेश वाली, देहरादून वाली, दोबाटा, सिराई, उप्पू, छाम, कण्डीसौड़ , कमांद, भलड़ियाल, लंबगांव, चिन्यालीसौड़ , डुंडा, उत्तर काशी वाली गाड़ी मिल जाती थीं। ट्रक तो आठ बजे रात तक मिल जाते थे जाड़ों में। ऋषिकेश की तरफ तो तांता लगा रहता था। चैक में गाड़ियों की चॉइस देखी जाती थीं। अब लिफ्ट का बड़ा नुकसान हो गया।

यात्रियों की संख्या खूब होती थी, क्योंकि मार्ग एक ही था। बाद में यात्री केदारनाथ से घनसाली होते हुए लंबगांव, धौंत्री और गंगोत्री पहुँचने लगे। वैसे वापस जाने लगे। इसमें भी चंबा छूटने लगा। यात्रियों को ले जाने वाले वाहन के ड्राइवरो के शॉर्टकट सड़क देखी रहती थीं। वह अपने तेल और समय की बचत पर चार धामों में पहुँचते रहे। निश्चित रूप से राज्य बनने के बाद सड़कों का जाल बिछा लेकिन इससे चम्बा को नुकसान हुआ।

इसके बाद इसी राजमार्ग में पीपलमंडी चिन्याली सौड़ की बारी है। यहाँ भूमिगत टनल तो नहीं बन रही लेकिन पिपलमंडी, चिन्यालीसौड़ से ऊपर रोड ले जायी जा रही है। चिन्यालीसौड़ के कुछ दुकानदारों ने सौड़ के इर्दगिर्द जमीन खरीद ली है। लेकिन चिन्याली बाजार का नुकसान ज्यादा इसलिए नहीं होगा कि, बाजार के नीचे नदी, झील है। नई सड़क नीचे की तरफ कभी नहीं बन सकती। सड़क ऊपर की तरफ ही रहेगी। लेकिन फर्क पड़ेगा। पीपलमंडी से पहले यह रोड़ कट कर बड़ेथी में मिलेगी। पीपलमंडी, चिन्यालीसौड़, नागणी, राज मार्ग से कट हो जायेगा। चार धाम प्रोजेक्ट संभवतः बाजारों को बचा कर डिजाइन किया है।

लेखक के बारे में –
शीशपाल गुसाईं देहरादून में रहते हैं। मूलत: टिहरी गढ़वाल जिले से ताल्लुक रखते हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं। ‘अमर उजाला’, ‘नवभारत टाइम्स’ अखबार से जुड़े रहे हैं। पत्रकारिता के लेक्चरर रह चुके हैं। ‘सहारा समय’ के क्षेत्रीय चैनल में टिहरी जिले से संवाददाता भी रहे हैं। पहाड़ के मुद्दों पर लगातार लिखते रहे हैं।

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