स्मृति शेषः जहां सुनाये जाते थे फैसले, उसे वक्त ने अपना फैसला सुना दिया

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इन्द्र सिंह नेगी

कल अचानक उत्तरकाशी जनपद के यमुना घाटी स्थित राजगढ़ी जाना हुआ। राजगढ़ी रंवाई परगने का तहसील मुख्यालय हुआ करता था, जो बाद में हस्तांतरित हो गया। यहां केन्द्रीय विद्यालय, राजकीय इन्टर कालेज आदि कई छोटे-बड़े संस्थान है। यह टिहरी रियासत के पश्चिमी क्षेत्र का महत्वपूर्ण शक्ति केंद्र रहा जो बनाल व ठकराल पटट्टी के मध्य में सुदंर सी पहाड़ी पर स्थित है। यह ऐसा स्थान है जहां से दायें-बायें, आमने-सामने यमुना घाटी व नदी के बड़े क्षेत्र का अवलोकन किया जा सकता है। यहां पहुंचने के लिए नौगाँव से एक रस्ता पुजेली होकर और दूसरा बड़कोट से यमुनोत्री मार्ग पर आगे बढ़कर बायीं ओर थान होकर जाता है।

राजगढ़ीः खंडर में तब्दील राजप्रसाद

राजगढ़ी में टिहरी नरेश सुदर्शन शाह ने रंवाई शिल्प शैली में विशाल भवन बनवाया। जिसके चारों तरफ आवास आदि थे और बीच में बड़ा सा चैगान (आगंन) है। टिहरी नरेश जब रंवाई भ्रमण पर होते तो यहीं अपना दरबार लगाते। इसका निर्माण देवदार व सलीके से तराशे गये पत्थरों से किया गया है। छत देवदार के फट्टो के ऊपर स्लेट (पठाल) से ढक कर बनाई गई है।

अब ये विशाल भवन जिसको ‘राजतर’ कहा जाता था खंडर बन चुका है। नक्काशीदार खम्बे खड़े जरूर है, लेकिन कितने दिन टिके रहेगें कह नहीं सकते। जैसे-जैसे बची हुई छत के फट्टे सड़ रहे है वैसे-वैसे वो भीतर की तरफ गिरते जा रहे है । आंगन में चकोतरे, आड़ू के पेड़ो के साथ भांग व झाड़ियां भी उग आई है। जिससे भीतर की तरफ जाने में कठिनाई होती है। ठीक से देखने पर लगता है कि जैसे इस ऐतिहासिक भवन की बहुत सी निर्माण सामग्री इधर-उधर हो गई होगी।

राजशाही के खात्मे के बाद जिस तरह से इस ऐतिहासिक विरासत का संरक्षण होना चाहिए था वो हो नहीं पाया। जबकि टिहरी संसदीय क्षेत्र की बागडोर ज्यादातर राज परिवार के हाथों में रही रही। यही कारण है कि जहां कभी लोगों के भाग्य लिखने का काम होता था, नीतियां-रणनीतियां बनती थी उस स्थान का भाग्य समय लिख रहा है। यदि इसका ठीक से संरक्षण कर लिया होता तो ये रंवाई घाटी की वास्तुकला को जानने-समझने का यह एक महत्वपूर्ण केंद्र साबित होता।

लेखक के बारे में- इन्द्र सिंह नेगी पत्रकार, लेखक और सामाजिक कार्यकर्ता हैं। बतौर भाषा विज्ञानी श्री नेगी ने भारतीय भाषा लोक सर्वेक्षण के अंतर्गत जौनसारी भाषा कर सर्वेक्षण किया एवं लोक भाषाओं के व्यवहारिक शब्दकोश हेतु जौनसारी शब्दों का संकलन भी किया। जौनसार के लोक जीवन से विलुप्त होते कई विषयों का दस्तावेजीकरण करने वाले नेगी विभिन्न पुरस्कारों से अलंकृत किये गये हैं। जौनसार के मूल निवासी नेगी क्षेत्र पंचायत सदस्य भी रहे।

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