वैज्ञानिकों की चिंता है कि जिस तेजी से वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है, उससे आने वाले दशकों में इसका असर पेड़-पौधों पर पडेगा और वह अपनी पोषकता खोते जायेंगे। फिलहाल वैज्ञानिकों ने चावल समेत कुछ फसलों पर इसका प्रयोग करके देखा है और नतीजे चैंकाने वाले आये।
मौजूदा समय में कार्बन डाइ ऑक्साइड दुनिया की सबसे खतरनाक गैस के रूप में मशहूर है। ग्लोबल वॉर्मिंग या दुनिया के बढ़ते तापमान के लिए सबसे ज्यादा इसी गैस को जिम्मेदार माना जाता है। पर अभी हाल में इस गैस का एक और खतरनाक रूप सामने आया है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जिस तेजी से वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है, आने वाले दशकों में इसके असर से पेड़-पौधों की पोषकता कम हो जाएगी। फिलहाल वैज्ञानिकों ने चावल समेत कुछ फसलों पर इसका प्रयोग करके देखा है और नतीजे चिंता बढ़ाने वाले हैं।
इंसान अपनी ऊर्जा जरूरतों के लिए जीवाश्म ईंधन मसलन, कोयला, पेट्रोलियम पदार्थ या गैस वगैरह का इस्तेमाल करता है। इनके जलाने से कार्बन डाइ ऑक्साइड गैस का उत्सर्जन होता है जो धरती के वातावरण में पहुंचकर एक ऐसी परत का निर्माण करती है जो धरती की गर्मी को अपने पार होकर अंतरिक्ष में विलीन नहीं होने देती। नतीजे में धरती की गर्मी बनी रहती है। हमारे पास ऊर्जा के दूसरे विकल्प कम हैं इसलिए कार्बन डाइ ऑक्साइड का उत्सर्जन बरकरार है।
फिलहाल, अमेरिका, चीन और जापान के वैज्ञानिकों ने वातावरण में मौजूद कार्बन डाइ ऑक्साइड और पौधों की पोषकता के बीच एक संबंध देखा है। अलग-अलग प्रयोगों के जरिए पाया कि जो पौधे कार्बन डाइ ऑक्साइड की अधिकता वाले वातावरण में पनपते हैं उनके पोषक पदार्थ सामान्य वातावरण में पनपने वाले पौधों से गुणवत्ता में कमजोर थे। उदाहरण के लिए, जापान की यूनिवर्सिटी के काजूहिको कोबायाशी ने देखा कि ऐसे वातावरण में जहां कार्बन डाइ ऑक्साइड की मात्रा 568 से 590 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) थी वहां उगने वाले चावल के पौधों से जो चावल निकले थे उनमें आयरन, जिंक, प्रोटीन और विटामिन बी1, बी2, बी5 व बी9 की मात्रा कम निकली। काजूहिको का कहना है, “चावल से हमें सिर्फ कैलोरी ही नहीं मिलती। विकासशील देशों और विकसित देशों में रह रही गरीब आबादी के लिए चावल प्रोटीन और विटामिन का भी अहम स्रोत है। इसकी पोषकता में आने वाली कमी का सीधा असर यह होगा कि बहुत बड़ी आबादी कुपोषण शिकार हो जाएगी।”
इस प्रयोग में कार्बन डाइ ऑक्साइड की जो मात्रा रखी गई थी अनुमानत: इस सदी के उत्तरार्ध में पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइ ऑक्साइड बढ़कर इतनी ही हो जाएगी।अमेरिका के कृषि विभाग में पादप विशेषज्ञ लुइस जिस्का ने कॉफी पर इसी तरह का प्रयोग किया। प्रयोग के बाद देखा गया कि अधिक कार्बन डाइ ऑक्साइड वाले वातावरण में उगने वाले कॉफी के पौधे आकार में सामान्य से बड़े हो गए लेकिन उनमें पोषक तत्वों की मात्रा में कमी आई। कॉफी के अलावा लुइस और उनके साथियों ने चावल की 18 अलग-अलग प्रजातियों पर भी यही प्रयोग किया और पाया कि उनमें प्रोटीन 10 पर्सेंट, आयरन 8 पर्सेंट और जिंक 5 पर्सेंट कम हो गया। इसके अलावा बी1, बी2, बी5 और बी9 विटामिनों में 13 से 30 पर्सेंट की कमी आई।
प्रयोग में यह भी देखा गया कि अलग-अलग पौधों पर कार्बन डाइ ऑक्साइड का असर भी अलग-अलग हुआ। उदाहरण के लिए, गेहूं में प्रोटीन, आयरन और जिंक तत्वों की कमी हुई, सोयाबीन और मटर में लोहा और जिंक कम हुआ। लेकिन मक्का और ज्वार पर इसका कम असर हुआ, इसी तरह चावल की कुछ किस्मों पर भी इसका ज्यादा असर नहीं हुआ। इन प्रयोगों के नतीजों से वैज्ञानिक चावल की उन प्रजातियों की पहचान कर पाएंगे जिन पर कार्बन डाइ ऑक्साइड के बढ़े स्तर का बहुत ज्यादा असर नहीं होता।
जलवायु परिवर्तन या क्लाइमेट चेंज एक जटिल प्रक्रिया है। इसका धरती और उसके प्राणियों पर क्या असर होगा अभी यह भी ठीक-ठीक नहीं कहा जा सकता है, फिलहाल वैज्ञानिक केवल अटकलें लगा रहे हैं। इसलिए बेहतर है कि हम कार्बन डाइ ऑक्साइड समेत दूसरी ग्रीन हाउस गैसों पर रोक लगाने की कोशिश करें ताकि क्लाइमेट चेंज के असर को कम किया जा सके।