अल्मोड़ः मंडुवे को देखकर मुंह पिचकाने वाले अब उसे बड़े चाव से खायेंगे। हिमालयी क्षेत्र में पैदा होने वाले मंडुवे को कई लोग उसके भूरे रंग की वजह से पसंद नहीं करते थे। जबकि इस हिमालयी मोटे अनाज में कई पोषक तत्व मौजूद हैं, जो कई खतरनाक बीमारियों को मात दे सकते हैं। खैर 12 वर्ष की कठिन मेहनत के बाद विवेकानंद पर्वतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (वीपीकेएएस) के विज्ञानियों ने मंडुवे की नई प्रजाति विकसित करने में सफलता हासिल की है। यह नई प्रजाति सफेद रंग की होगी। जिसमें मूल प्रजाति के मुकाबले ज्यादा पोषक तत्व पाये गये है। मंडुवे के अलावा वीपीकेएएस के वैज्ञानिकों ने मक्के की नई प्रजाति भी विकसित की। जिसमें अमीनो अम्ल की मात्रा पहले से कहीं ज्यादा पाई गई है।
वीपीकेएस के विज्ञानियों ने वर्ष 2004 में पोषक तत्वों से लबरेज मंडुवा की नई प्रजाति विकसित करने के लिए शोध कार्य शुरू किया था। जो अब जाकर पूरा हुआ। पारंपरिक मंडुवे से हटकर नई प्रजाति का बीज भूरे रंग के बजाय सफेद रंग का है। विज्ञानियों ने इसे ‘वीएल मडवा-382’ नाम दिया है। इसमें प्रोटीन की मात्रा सामान्य प्रजाति से कहीं ज्यादा पाई गई है। वहीं कैल्शियम की मात्रा प्रति सौ ग्राम 340 मिलीग्राम तथा प्रोटीन 8.8 प्रतिशत तक है।
दाने-दाने सफेद
वीपीकेएएस के निदेशक डॉ लक्ष्मीकांत ने इस अवसर पर खुशी व्यक्त करते हुए कहा कि भले ही हमारा शोध काफी लंबा चला। लेकिन जो नई प्रजाति विकसित की गई वह पहले के मुकाबले बेहत्तर और पौष्टिक है। उन्होंने कहा कि वर्ष 2004 में हमने मंडुवे का संकरण किया। जो म्यूटेंट लिया वह सफेद रंग का था। नई प्रजाति के दाने अब सफेद ही निकलेंगे। जबकि परंपरागत मंडुवा गहरे भूरे रंग का होता है। मडवे की रोटियां ही नहीं अब नमकीन व बिस्किट वगैरह सभी सफेद रंग के होंगे जो आकर्षक लगेंगे।
अमीनो अम्ल का खजाना है नया मक्का
इसके अलावा विज्ञानियों ने हाइब्रिड मक्का भी विकसित किया। उसे क्यूपीएम-59 यानि क्वॉलिटी प्रोटीनमेज नाम दिया है। विज्ञानियों के अनुसार इसमें टैप्रोफेन व लाइसीन नामक अमीनो अम्ल की मात्रा सामान्य मक्के से अधिक पाई गई है। वहीं वैज्ञानिकों का कहना है कि मक्के की संकर प्रजाति भी पहले से ज्यादा पौष्टिक तैयार की गई है। दोनों के बीज किसानों को उपलब्ध किये जायेंगे। किसान इनका बीज खुद भी तैयार कर सकेगा।