देहरादून: प्रदेश में पीने के पानी की समस्या भविष्य में दूर हो जायेगी। एक ओर राज्य सरकार हर घर जल योजना संचालित कर रही है तो वहीं दूसरी ओर 50 वैज्ञानिकों का एक दल प्रदेश के सूख चुके जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने में जुटा है। इस शोध दल में उत्तराखंड जल संस्थान, टेरी स्कूल ऑफ एडवांस साइंसेज, टेरी इंस्टीट्यूट और डीएवी पीजी कॉलेज के वैज्ञानिक शामिल है। जो राष्ट्रीय हिमालयी अध्ययन मिशन की ओर से वर्तमान में प्रदेश के चार प्रमुख जल स्रोतों का अध्ययन कर रहे है।
प्रोजेक्ट के मुख्य अन्वेषक डॉ. प्रशांत सिंह का कहना है कि उत्तराखंड में 1150 सूखे जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। इसी कड़ी में सबसे पहले मसूरी के सेलूखेत, टिहरी के प्रतापनगर और चंबा के साथ ही कर्णप्रयाग के जल स्रोतों का अध्ययन किया गया है। उन्होंने बताया कि इन सभी स्रोतों से जल संस्थान पानी की आपूर्ति करता है।
इन जल स्त्रोतों का जल स्तर गिरने की वजह से पेयजल आपूर्ति बुरी तरह से प्रभावित हो रही है। इनका सर्वे, जियोफिजिकल इनवेस्टिगेशन, मिट्टी का टेस्ट हो चुका है। पानी की गुणवत्ता की जांच भी की जा चुकी है। इसके साथ ही जीआईएस रिमोट सेंसिंग की मदद से पूरा विश्लेषण किया गया है। अब वैज्ञानिक इस कोशिश में जुटे हैं कि किस तरह से इनमें पानी की उपलब्धता को बढ़ाया जाए। इस दिशा में भी काफी हद तक कामयाबी मिल चुकी है।
अभी तक के अध्ययन में यह बात भी सामने आई है कि प्रदेश में 14 जल स्रोत पूरी तरह से सूख चुके हैं। 77 स्रोतों का जल स्तर 75 प्रतिशत से अधिक सूख चुका है। राज्य के 330 स्रोतों के स्राव में 50 प्रतिशत की कमी आ चुकी है। कुल 1229 स्प्रिंग स्रोतों के जल स्तर पर पर्यावरणीय व अन्य कारकों का असर पड़ रहा है। वैज्ञानिक बड़े जल स्रोतों के बाद अब छोटे स्रोतों की भी जांच पड़ताल में जुट गए हैं।