देहरादून। वन अनुसंधान संस्थान के वनस्पति विज्ञानियों ने उत्तराखंड के अलावा जम्मू कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम जैसे हिमालयी राज्यों के मध्य हिमालयी क्षेत्रों में मेदा महामेदा प्रजाति की वनस्पतियों की खोज की है। इन वनस्पतियों की खोज करने के साथ ही इनका जीन बैंक भी तैयार किया है, ताकि भविष्य में इनके विलुप्त होने की स्थिति में संरक्षण किया जा सके।
वन अनुसंधान संस्थान की वरिष्ठ वनस्पति विज्ञानी डॉ. आंचल राणा के मुताबिक, मध्य हिमालय क्षेत्रों में काफी अध्ययन के बाद अष्टवर्ग में शमिल दो प्रमुख वनस्पतियों- मेदा और महामेदा की खोज की गई है। डॉ आंचल के मुताबिक, मेदा-महामेदा वनस्पतियां हिमालया क्षेत्रों में 1800 से लेकर 3300 मीटर की ऊंचाई पर खोजी गई हैं। इन वनस्पतियों को उत्तराखंड के जोशीमठ, चमोली, ओली और कुमाऊं के कई इलाकों में खोजा गया है। दुर्लभ प्रजाति की वनस्पतियों में शुमार मदा और महामेदा वनस्पतियों को संरक्षित करने के लिए इनका जान बैंक तैयार किया गया है।
वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ आंचल राणा के मुताबिक, मैदा और मरोदा वनस्पतियों का इस्तेमाल च्यवनप्राश समेत कई औषधियों में किया जाता है। इसका इस्तेमाल शारीरिक कमजोरी को दूर करने के साथ ही भूख बढ़ाने में किया जाता है।
वनस्पति विज्ञानियों के मुताबिक, मध्य हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाने वाली मेदा, महामेदा वनस्पतियों की ऊंचाई औसतन 20 से लेकर 120 सेंटीमीटर तक होती है। दोनों वनस्पतियों में सफेद हरे रंग का फूल निकलता है।
वनस्पति विज्ञानियों की माने तो मैदा और महामेदा दो ऐसी वनस्पतियां है जो अष्टवर्ग वस्स्पतियों में शामिल है। अष्ट वर्ग वनस्पतियों में रिद्धि सिद्धि, जीवक, शिक्षक, मंदा महामे काकोली और छिरकाकोली भी शामिल हैं। जिसमें कली छीरकाकोली वनस्पतियां पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है, बाकी विलुप्त होने क कगार पर है।