यह घटना जिनती दर्दनाक है। उतनी उस सिस्टम के लिए शर्मनाक भी है, जो बना तो जनता के लिए है, लेकिन भ्रष्टाचार और मानमानी से जरूरतमंदों के काम नहीं आता है। ऐसा ही एक मामला पश्चिम मंगाल में भी सामने आया है। पश्चिम बंगाल में एक दिल दहला देने वाली घटना सामने आई हैं। यहां पर एक 5 महीने के बच्चे की मौत अस्पताल में हो गई। दैनिक मजदूर पिता के पास एम्बुलेंस का किराया देने के लिए रुपये नहीं थे। अस्पताल से पिता के हाथ में बच्चे का शव थमा दिया। बेबस पिता भी क्या करता। कई एंबुलेंस से पता किया लेकिन एंबुलेंसवालों ने 8000 रुपये किराया मांगा। गरीब पिता रोता-बिलखता रहा, गिड़गिड़ाता रहा लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी। मेरे बच्चे को कालियागंज तक ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने 8000 रुपये मांगे, जो मेरे पास नहीं थे।
आखिर पिता ने एक झोले में सामान की तरह बेटे का शव रखा, उसे छिपाया और बस में 200 किलोमीटर का सफर तय किया और अपने घर शव लेकर पहुंचा। सफर के दौरान पिता ने किसी को भनक नहीं लगने दी की झोले में शव है। घटना सिलीगुड़ी की है। पीड़ित पिता ने बताया कि सिलीगुड़ी से कालियागंज में उसके घर तक शव को ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने 8000 रुपये मांगे थे। वह गरीब है और उसके पास एंबुलेंस का किराया देने को इतने रुपये नहीं थे।
बच्चे का इलाज भले ही सरकार मेडिकल कॉलेज में हो रहा हो लेकिन उनकी जमापूंजी 16000 रुपये खर्च हो गई। देबशर्मा ने कहा कि मेरे बच्चे को कालियागंज तक ले जाने के लिए एंबुलेंस चालक ने 8000 रुपये मांगे, जो मेरे पास नहीं थे। उन्होंने दावा किया कि एम्बुलेंस नहीं मिलने पर उसने शव को एक बैग में डाल लिया और दार्जिलिंग के सिलीगुड़ी से करीब 200 किलोमीटर तक उत्तर दिनाजपुर के कालियागंज तक बस से सफर किया।
आशीम ने बताया कि रास्ते में उन्होंने इस बात की किसी यात्री को भनक नहीं लगने दी क्योंकि उसे डर था कि यदि सहयात्रियों को पता चल गया तो उसे बस से उतार दिया जाएगा। उसने यही दिखाया कि झोले पर कोई सामान है। उन्होंने कहा कि 102 योजना के तहत एक एंबुलेंस चालक ने उससे कहा कि यह सुविधा मरीजों के लिए है न कि शव को ले जाने के लिए ।