देहरादून। फायर सीजन शुरू होते ही उत्तराखंड के जंगलों में लगातार आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। आग के कारण वन्यजीव और पर्यावरण के नुकसान का मुद्दा उत्तराखंड में चुनावी शोरगुल के बीच दबकर रह गया है। यही कारण है कि चुनावी शोर में वनाग्नि का मुद्दा शांत है, लेकिन उत्तराखंड के जंगलों में बढ़ती आग की घटनाएं चिंताजनक बनती जा रही है। यह समस्ता जलवायु परिवर्तन और जल संकट की संभावना को भी बढ़ा रही है।
सर्द सीजन में भी लगी आग
बीते कुछ सालों से उत्तराखंड में वनाग्नि की घटनाएं बढ़ने लगी हैं। हालांकि, पहले उत्तराखंड के जंगलों में आग केवल गर्मी के सीजन में ही लगती थी, लेकिन इस वनाग्नि घटना सर्द सीजन में भी रिकॉर्ड की गई। भारतीय वन सर्वेक्षण की रिपोर्ट बताती है कि नवंबर 2023 से जनवरी 2024 तक उत्तराखंड वनाग्नि की 1006 घटनाएं रिकॉर्ड की गई। हालांकि, भारतीय वन सर्वेक्षण के इस रिपोर्ट में सभी छोटी-बड़ी आग की घटनाएं दर्ज हैं।
नवंबर से अब तक 45 घटनाएं दर्ज
वनाग्नि में जिम्मेदार उत्तराखंड वन मुख्यालय भी आग की घटनाओं को लेकर लगातार बैठक कर रहा है, लेकिन बावजूद इसके रोजाना आग लगने की घटनाओं में इजाफा हो रहा है। वन मुख्यालय के मुताबिक, नवंबर 2023 से 3 अप्रैल 2024 तक प्रदेश में लगभग 45 घटनाएं दर्ज की गई हैं। गढ़वाल मंडल में लगभग 19 घटनाएं आग लगने की दर्ज की गई हैं, जबकि कुमाऊं मंडल में 11 घटनाएं दर्ज की गई हैं। इसके अलावा वन्यजीव क्षेत्र में 15 वनाग्नि घटना रिकॉर्ड की गई है। ये सभी बड़ी घटनाएं हैं जिसने वन संपदा काफी नुकसान पहुंचाया है।
11.25 आरक्षित वन क्षेत्र में दावानल की घटनाएं
मुख्य वन संरक्षक वनाग्नि एवं आपदा प्रबंधन उत्तराखंड के मुताबिक गढ़वाल मंडल के 11.25 आरक्षित वन क्षेत्र में आग लगने की घटनाएं घटी है, जबकि कुमाऊं के 9.93 वन आरक्षित क्षेत्र में आग लगने की घटना घटी है। इसके साथ ही 11.6 वन्य जीव क्षेत्र में वनाग्नि की घटना रिकॉर्ड की गई है। आग लगने से गढ़वाल में 21.05 हेक्टेयर भूमि प्रभावित हुई जबकि कुमाऊं में 11.93 हेक्टेयर भूमि आग की चपेट आई है। वन्यजीव क्षेत्र में 12.95 हेक्टेयर भूमि आग की भेंट चढ़ी है।