उत्तराखंड के हल्द्वानी के टमाटर ने अपने खास रंग और स्वाद के लिए देश के साथ ही विदेशों में भी अपनी खास पहचान बनाई है। एक समय पाकिस्तान से श्रीलंका तक पहुंचने वाले टमाटर को अब किसान सड़कों पर फेंकने को मजबूर हैं। पड़ोसी देशों में निर्यात बंद होने से किसानों को उपज की लागत भी नहीं मिल रही है।
हल्द्वानी के टमाटर की डिमांड
बता दें कि जिले के मैदानी क्षेत्र के तीन हजार से ज्यादा किसान टमाटर की खेती करते हैं। नवंबर से फरवरी माह तक टमाटक बाजार में आता है। पूर्व में इस समय देश के अन्य स्थानों पर टमाटर की उपज नहीं होती थी। जिससे हल्द्वानी के टमाटर की बाजार में काफी मांग रहती थी। पाक और श्रीलंका तक यहां का टमाटर निर्यात किया जाता था।
3 से 4 रुपये प्रति किलो बिक रहा टमाटर
मंडी के आंकड़ों के अनुसार हर साल 40 हजार कुंतल के आसपास स्थानीय टमाटर बिक्री के लिए आता है। इस वर्ष भी अभी तक 42 हजार 780 कुंटल टमाटर किसानों ने मंडी में भेजा है। पांच साल पहले तक 15 से 20 रुपये प्रति किलो थोक में बिकने वाले टमाटर के किसानों को अब 3 से 4 रुपये प्रति किलो का दाम मिल रहा हैं। जबकि उत्पादन लागत ही करीब छह रुपये प्रति किलो पड़ रही है। भाव नहीं मिलने से किसान टमाटर को खेतों में ही सड़ने को छोड़ रहे हैं।
आखिरी बार 2020 में भेजा था विदेश
पड़ोसी देशों में पिछले कुछ सालों में बिगड़े आर्थिक हालातों का असर हल्द्वानी के किसानों पर भारी पड़ रहा है। पाक व श्रीलंका सेटमाटर की मांग नहीं आ रही है। कुछ साल पहले तक चार से पांच हजार कुंतल टमाटर भेजा जाता था। जिससे अच्छी कीमत मिल जाती थी। आखिरी बार 2020 में पांच सौ कुंतल टमाटर भेजा था। अब राज्यों मेंभी खरीदार नहीं मिल रहे हैं। आखिरी बार 2020 में टमाटर अन्य देशों तक गया था। टमाटर का उत्पादन बढ़ रहा है और मांग घट रही है। जिससे भाव में कमी आई है।