ऐसा नहीं है कि हमारे पहाड़ आत्मनिर्भर नहीं है। पहाड़ के अधिकांश गांव समृद्ध है। लेकिन देखा-देखी में पहाड़ों की समृद्धि शहरों को पलायन कर रही है। यह पहाड़ के लिए किसी महामारी से कम नहीं है। इस पलायन रूपी महामारी को रोका जाना चाहिए। पहाड़ों से पलायन न हो इसके लिए ठोस नीतियों की दरकार है। ऐसी नीतियां तभी संभव है जब जनप्रतिनिधि पहाडों की समझ रखेंगे, पहाड़ों की वकालत करेंगे। बिडम्बना यही है कि पहाड़ों को समझने वाले जनप्रतिनिधियों की संख्या न के बराबर है। ऐसे जनप्रतिनिधि है ही कहां जो पहाड़ों की खाक छानें। हालांकि कुछ युवा जनप्रतिनिधि है जो पहाड़ों के दर्द को समझते हैं। उन्हीं में से एक हैं केदारनाथ विधायक मनोज रावत। पहाड़ों में अपना पसीना बहा रहे रावत इन दिनों केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र के सीमान्त गांवों के दौरे पर हैं। हिमाचल के पहले मुख्यमंत्री डाॅ. वाई. एस. परमार से प्रभावित विधायक मनोज रावत कहते हैं कि अपनी यात्रा के दौरान उन्हेंने कई गांवों को देखा जो आत्मनिर्भर हैं। वह कहते हैं कि सिलगोट जैसे गांव पहाड़ की तस्वीर बदलने में सहायक हो सकते हैं बशर्ते पहाड़ों के लिए ठोस नीतियां बने जो पूरी तरह गांवों पर केंद्रित हो। पढ़िेये सिलगोट के बारे में क्या कहते हैं केदारनाथ विधायक मनोज रावत।
जुलाई माह के आखिरी सप्ताह भिंगी पल्द्वाड़ी गांव के सिलगोट तोक जो मक्कू और हुड्डू से आने वाली पहाड़ी नदियों के संगम पर बसा है, जाने का मौका मिला । पैदल दुर्गम रास्ते से बरसात में नदी के किनारे के गांव जाने तक, सभी पर दर्जन भर जोंकों का आक्रमण हो चुका था। कठिन सफर के बाद सिलगोट पंहुचते ही ऐसा लगा जैसे स्वर्ग में हों।
1952-1977 तक गांव के सभापति रहे, पंडित भोला दत्त सेमवाल ने इस निर्जन जगह को पहाड़ के परिवार के लिए, खेती-किसानी के लिए जो सुविधायें चाहिए उनसे सजाया-संवारा। घर, चैक, खेत, घराट हो या नहर वे बाहर से कुछ नही लाए, हर समान वंही का लगाया। मेरी साथ पीएमजीएसवाई सिंचाई खंड के 2 अभियंता भी गए थे, जो उनके द्वारा बनाई गई केवल पत्थरों की नहर, पानी की निकासी व्यवस्था जो 50 सालों बाद भी कोई रख रखाव नही मांगती है और जिससे थोड़ा भी पानी लीक नही होता है, देख कर चमत्कृत थे। जबकि सरकारी नहरों पर बनने और उसके रख रखाव पर लाखों खर्च होने के बाद भी पानी नही चलता।
पंडित भोला दत्त जी के जमाने में सिलगोट में 10-15 भैंस, उतनी ही गायें ओर बड़े सफेद बैल होते थे। हर तरह की खेती सिलगोट में होती थी, फल होते थे सब्जियां होती थी। सिलगोट में न केवल दूध-घी की नदियां बहती थी बल्कि ये घर राजनीतिक-सामाजिक चेतना का केंद्र भी था। पूर्व विधायक पंडित गंगाधर मैठाणी जी के लिए ये दूसरा घर था।भोला दत्त जी ने तब के दुर्गम गांव भिंगी- पल्द्वाड़ी में शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्रों की स्थापना भी की।
फिर आया उनके पुत्रों का समय जिनमें पंडित चंद्रशेखर जी केदारनाथ मंदिर में वेदपाठी थे और उनके 2 अनुज थे, उन्होंने आगे बढ़ कर 5 किलोवाट का घराट और मिनी हाइडिल लगाया जो धान कूटने के साथ घर की जरूरत के लिए बिजली भी पैदा करता है। समय के अनुसार और सुविधाएं भी जोड़ी। सभी भाई नौकरी में थे, लेकिन गांव, खेती-किसानी और पशुपालन नही छोड़ा। दुर्भाग्यवश चंद्रशेखर जी 2013 की केदारनाथ जल विप्लव की भेंट चढ़ गए। पर उन्होंने और उनके भाइयों ने भी अपने पिता की परंपरा को आगे बढ़ाया।
अब नई पीढ़ी के युवाओं ने सिलगोट में मिनी ट्रैक्टर, थ्रैशर आदि मशीनें रखी हैं। उनकी बूढ़ी दादी, मां और नई बहू मिलकर न केवल इस इलाके में हर किस्म की खेती करती हैं बल्कि आम से लेकर माल्टा तक उगाते हैं। 2 साहीवाल गाय भी हैं। अच्छा पढ़-लिख कर आगे बढ़ रही इस नई पीढ़ी को भी अपने पिता और दादा जी की तरह अपने गाँव से पूरा मोह है, इसे छोड़ना नही चाहते।
एक नेपाली भी 30-35 साल से इस परिवार का सदस्य है, बच्चों का चाचा है, बिना उसके इस घर की कल्पना भी नही की जा सकती। स्वर्गीय पंडित चंद्रशेखर जी की धर्मपत्नी कुसुम बताती हैं कि नमक और चीनी के अलावा वो कुछ नही खरीदते हैं। बल्कि लोगों को भी भरपूर देते हैं। सिलगोट पूरी तरह से आत्मनिर्भर गांव है और सेमवाल परिवार आज भी कठिनाइयों के बाबजूद भी अपने घर पर टिका है। सिलगोट उत्तराखंड के लिए आदर्श मॉडल है। पड़े-लिखे, सम्पन्न और अपनी जड़ों से जुड़े परिवार का मॉडल।
एक ही जरूरत है इनकी सड़क से बहुत दूर हैं दुर्गम रास्ते से जान हथेली पर रख कर आना-जाना होता है। इसी समस्या के समाधान के लिए मैं, प्रधान जी , श्री प्रताप सिंह रावत गुरुज , खत्री जी, उपप्रधान जी और वीएमजीएसवाई के अभियंता सिलगोट गए थे। भगवान हमें इतनी शक्ति दें कि हम सेमवाल परिवार का दुख कुछ कम कर पाएं।
लेखक के बारे मेंः- मनोज रावत वरिष्ठ पत्रकार और कांग्रेस पार्टी के युवा चेहरे हैं, वर्तमान में रावत उत्तराखंड विधानसभा के सदस्य है। केदारनाथ विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित मनोज रावत अपनी बेबाकी के लिए जाने जाते हैं। रूद्रप्रयाग के मूलनिवासी रावत राज्य हितों के लिए हमेशा प्रखर रहे हैं। वह राज्य के पहले ऐसे विधायक है जिनके नाम पर उत्तराखंड विधानसभा में सर्वाधिक प्रश्न पूछे जाने का रिकाॅर्ड है।